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बस,उतना ही आसमान मेरा है…

kavita
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बरसों पहले,एक लड़की थी, मेरी साथी,मेरी दोस्त ,मेरी बहन ,बहुत अजीज़ ;बिंदास हंसती खेलती, खुश रहने वाली खुश रखने वाली, मतलब ये के बहुत प्यारी ।खुलते आसमानों में चिड़िया जैसी ,कोई रोक नही बन्धन नही , भाई नही थे तो लड़को का काम भी खुद ही करना था अंदर बाहर सभी फिर अलग हो गए हम, मिली उस से कुछ समय बाद , शादी के बाद उसकी , घर गयी थी ,दो तल्ला मकान सभी सुख सुविधाओं से भरा ,पुरानी हवेली की तरह | रौशनी के लिए ,हवा के लिए ,खिड़कियां और रौशनदान तो थे मगर सींखचे बन्द थे बोलने की इज़ाज़त तो थी ,मगर सिर्फ हाँ । हैरान थी ,जो लड़की खिलखिला के हंसती थी तो सारी दिशाएं कौंध जाती थीं, ग्रहण लग गया था उस हंसी को ,आने से पहले मिली तो खिड़की की सलाखों को पकड़ घूँघट लिए खड़ी थी वो, जैसे पिंजरे में बन्द मैना जिसका आकाश सिमट आया था मानो खिड़की में
मेरा आकाश बस इतना सा ,
मेरी दुनिया कितनी सिमटी सी
मेरी नज़रो में समाई धुप छाँव , बस इतनी सी…!!
कल तो दुनिया का मेरी
फैलाव समेटा जाता न था,
इक छोर था मेरा जहाँ
दूसरा सिरा कोई न था।
खुलते बहते बादल थे
मेरी अठखेलियों का सामान,
और धुप छाँव में
मेरी खुशियों के रंग खिलते थे ।
आज बन्द एक खिड़की से
दीखता हुआ एक कोना
जो शायद स्याह है ,
मेरी बुझती उम्मीदों के रंग ले कर
उतना ही ;
बस उतना ही ;आसमान मेरा है।।

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