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दान -समर्पित आज के दिन को –संक्रांति

kavita
kavita
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समर्पित आज के दिन को —

ये दान है सहीअर्थ में
मदद दीन की दुखी की
जरूरतमन्द की
मोटे मोटे पेट निकाले
जिनकी जेबें भरीं हो चांदी के सिक्कों से
उन्हें ज़रुरत नहीं तुम्हारे सेवा भाव की
या के तुम्हारे दान की
उन्हें भी नहीं जो तबके से तो नीचे आते हैं
मगर आज मलाई कोटे में आते हैं
जरूरत तो उस हर गरीब को है
जिसके घर में रोटी तो ,
हो सकता है कि हो
तन ढकने भर कपडे भी
मशक्कत से मिल जाते हों
हो सकता है कि
छत भी सर पे हो
(भले लिराये की ही )
पर फीस भरने के पैसे ना हो ll
लक्ष्मी/दुर्गा /सरस्वती तो हों
पर अर्थाभाव में
उनके गढ़न विसर्जन
या उनके मंदिर के बनाने की
गुंजाइश न हो ll
और भी बहुत कुछ है नज़र डालने को ,
दान करो;
हर धर्म में लिखा है
पर किसे ;ये आपके निर्णय पे टिका है
पढ़ा सकते हो किसी बच्चे को,
तो पढ़ाओ
घर बसा सको किसी मज़लूम का,
तो बसाओ
बीमार किसी को ,दवा दिला सको ,
तो दिलाओ
मगर कृपा करके किसी धर्म को
ना बीच में लाओ,
न परोपकार की आड़ ले
कोई धर्म बदलवाओ ll
कोई किसी धर्म
किसी मज़हब से जुड़ा है तो
ऐसा नहीं किकोई मज़हब
किसी खुदा से बड़ा है
जन्म दिया है किसी घर में
तो कुछ सोच के किया होगा
मदद करने का हौसला दिया हैतुम्हे
तो कुछ सोच के दिया होगा
मददगार बनाना चाहता था तुम्हें
व्यापारी तो नहीं बनाया ll
फिर बनते हो ठेकेदार क्यों
मदद के नाम पर

जिगर रखते हो तो हर कौम हर मज़लूम की करो
जब हो सके जितनी हो सके जहां हो सके करो
ना देखो मुंह किसी संक्रांति किसी ख़ास माह का
देख पाओ तो मज़बूर के आंसू देख कर करो

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