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खोयी हुई गरमाहटें

kavita
kavita
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वही प्यारी सी सर्दियाँ हैं वही धुप की कुनकुनाहटें
फिर भीकहीं हैं खो गयीं कुछ रिश्तों की गरमाहटें
सामने सहन में फ़ैली  अचार की मरतबानियां
व्यंजनों की विधियां कहीं ,कभी रिश्तों की सुल्झाइयां
चाचियों की ,ताइयों की, होने वाली बुराइयां
याद आती हैं बहुत हमको वो प्यारी सर्दियां
सलाइयों की खटखटें बुनाइयों की बारीकियां
भाभियों की ,सहेलियों की  चुहलबाजियां
मूंगफलियों की दावतों पे मोहल्ले  की राजनीतियां
आती हैं ऐसी अब कहाँ ,मिलती हैं ऐसी सर्दियाँ
अबतो
धुप है पर सहन नहीं अचार की ज़रूरत भी नहीं
स्वेटर अब कहाँ बुने जाते हैं
जो भी हैं सब रेडीमेड ही आते हैं
ठंढ वो रज़ाई वाली अब पड़ती ही नहीं
हीटर ब्लोअर की ही बहार है
हड्डियों को कड़कड़ा दे जो
उस ठण्ड का अब हमें इंतज़ार है
ठंढ बढती है तो लोग पास आते हैं
गरमाहटें क्या हैं रिश्तों की
कुछ तो समझ पाते हैं
ठंढ ज़िंदगी से क्या गयी यारों
कि ज़िन्दगी गरमाहटों को तरस गयी अपनी
सपनो सी बस याद आती है
अब तो बीती वो ज़िन्दगी अपनी
वही प्यारी सी सर्दियाँ हैं वही धुप की कुनकुनाहटें
फिर भीकहीं हैं खो गयीं कुछ रिश्तों की गरमाहटें
सामने सहन में फ़ैली  अचार की मरतबानियां
व्यंजनों की विधियां कहीं ,कभी रिश्तों की सुल्झाइयां
चाचियों की ,ताइयों की, होने वाली बुराइयां
याद आती हैं बहुत हमको वो प्यारी सर्दियां
सलाइयों की खटखटें बुनाइयों की बारीकियां
भाभियों की ,सहेलियों की  चुहलबाजियां
मूंगफलियों की दावतों पे मोहल्ले  की राजनीतियां
आती हैं ऐसी अब कहाँ ,मिलती हैं ऐसी सर्दियाँ
अबतो
धुप है पर सहन नहीं अचार की ज़रूरत भी नहीं
स्वेटर अब कहाँ बुने जाते हैं
जो भी हैं सब रेडीमेड ही आते हैं
ठंढ वो रज़ाई वाली अब पड़ती ही नहीं
हीटर ब्लोअर की ही बहार है
हड्डियों को कड़कड़ा दे जो
उस ठण्ड का अब हमें इंतज़ार है
ठंढ बढती है तो लोग पास आते हैं
गरमाहटें क्या हैं रिश्तों की
कुछ तो समझ पाते हैं
ठंढ ज़िंदगी से क्या गयी यारों
कि ज़िन्दगी गरमाहटों को तरस गयी अपनी
सपनो सी बस याद आती है
अब तो बीती वो ज़िन्दगी अपनी

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