kavita
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चलाचली की बेला है ,पंछी आज अकेला है,
रिश्तों का हर धागा टूटा,जाना इसे अकेला है
हर पल तार पिरोये जिसमे ,मोती मोती पोये जिसमे,
टूट चली वो ही माला अब,बिखर गया हर दाना है
रिश्तों की बरात खड़ी थी ,सबकी हर इक बात बड़ी थी
आज अकेले सोचे पंछी, कहाँ गए वो सुख के साथी
सूनी गलियां और चौबारे, हर पल नैना बाट निहारे
मेलों की शोभा थी जिनसे ,छूटे पथ में सारे हैं
जीवन भर ये करता आया ,मुंह का दाना देता आया
वो भी आज बने बेगाने ,जिन पर दुनिया वारी है
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