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अब ज़नाब ज़रा देखें ,आदमी और औरत से थोड़ा पहले -लड़के और लड़की ,चाहे मित्र ,चाहे भाई -बहन -बेचारी त्रस्त बालिकाएं ,जन्म लेते ही मुंह लटक जाते हैं- यहां तक की बधाई भी लोग डर – डर के ही देते हैं ,पहली संतान हो तो फिर गनीमत ,कहीं दूसरी तीसरी हुई तो सोचें भी मत -अजी ज़नाब रिश्ते टूट जाते हैं! दूसरी तरफ कुंवर साहब के अवतरित होते ही बड़ी बड़ी नेग न्योछावर होती हैं बधाइयां लेने देने के सिलसिलों का पारावार नहीं –अब तो खैर गली -गली इंग्लिश स्कूल खुल गए पर पहले तो लाट साब इंग्लिश स्कूल में और बहनो का क्या –चाकरी करानी है ?चार अक्षर घर में पढ़ो और घर गृहस्ती के काम धाम सीखो –अभी ऐसा नहीं होता -कहना तो गलत होगा;होता है ,धड़ल्ले से होता है- चार आयतें पढ़ लो बहुत प्रोग्रेसिव हो तो १० तक १२ तक पढ़ लो ,उसके बाद मुंह हाथ बाँध के कफ़न में ,घर में बैठो ,मगर कह नहीं सकते न –एंटीसेक्युलर जो घोषित हो जाएंगे ; बेगानी शादी में अब्दुल्ला मियाँ को दीवाना होने की इज़ाज़त जो नहीं ,तो छोड़े बहरहाल , क्या कह रहे थे हम –हाँ तो घर की इज़्ज़त आबरू सब हमारे ही दम पे तो चलती है -इधर न देखो ,उधर न देखो वगैरह वगैरह ,कहीं जाओ तो भाईनुमा बॉडीगार्ड साथ ले कर .ये सब तो खैर हमने झेला है –आज की लड़कियों के तंज तो ये हैं कि भाईजान अपनी बारी में तो बदलते ज़माने की दुहाई देंगे ,को एजुकेशन की वकालत करेंगे सिगरेट ड्रिंक पार्टी औ—र गर्ल फ्रेंड को आज के ज़माने की मूलभूत ज़रूरतें बताएँगे ,पर बहन की बात आते ही आदिम से भी आदिम पुरुष हो जाएंगे –गर्ल फ्रेंड के आगे वाक् मिष्ठान्न के थाल के थालसजा देंगे -बहनो पर वो हुक्म चलाएंगे के क्या कहना
—-बेटी पढ़ने में कितनी भी होशियार हो पढ़ाने में पचासों चीजें देखनी हैं ,बाहर नहीं भेज सकते बिगड़ न जाए ,लोग क्या कहेंगे =शादी के किये लड़का उसी हिसाब से देखना होगा कमतर देखा नहीं जा सकता और ज्यादा पढ़ा हुआ, नौकरी वाला है तो दाम ज्यादा लगेंगे –(मुझे तो लगता है की गर्भ में भी वोट का अधिकार होना चाहिए इतनी परेशानियों से दो चार होना है –सुन कर आधी से ज्यादा गर्भस्थ कन्याएं तो यूँ भी शायद माँ बाप को अपना खून माफ़ कर दें )हम बेवज़ह ही चिल्लाते हैं भ्रूण हत्या बंद करो -बस बंद करो —आगे क्या—एक बड़ा सा शून्य सन्नाटा –भ्रूण जब कन्या बन कर घर में आती है तो अगर घर में बेटा नहीं है तो अगली संतान का नंबर तो तभी लग जाता है पांच छे सात –ये मैं सामान्य वर्ग की बात कहरही हूँ –१५-२० प्रतिशत प्रगतिशील लोगों की नहीं —
अब बेटों के भी तंज सुन लें वैसे आप अपनी पोजीशन से वाकिफ तो खूब हैं पर फिर भी परेशान रहते हैं की सारे मुश्किल कामों की तवग्गो इन्ही से क्यों होती है? बाहर से कुछ लाना हो या कोई भारी सामान उठाना इन लड़कियों से कोई कुछ क्यों नहीं कहता? मन हो या ना हो ये जब जाएँ कहीं भी ,अपना ज़रूरी से ज़रूरी काम छोड़ के इनकेपीछे जाना होता है lयहां तक की दुनिया का सबसे मुश्किल बोझ भी इन्ही के सर है यानी की पढ़ाई का बोझ ,आगे ज़िम्मेदारी जो उठानी है घर भर की ,चैन से अपनी मर्ज़ी से कुछ कर भी नहीं सकते और एक तरफ देखो ज़रा इन लड़कियों को क्या ठाठ हैं कोई पूछने वाला नहीं की पढ़ा या नहीं — तो गोया तंज़ अपने अपने ,शिकायतें अपनी अपनी -हर शख्स बिच्छू हर शख्स साधू
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