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औरत और आदमी को ही ले लो सभी साधू हैं सभी बिच्छू पहले महिलाओं को ही लें –लेडीज़ फर्स्ट —
हाँ तो सदियों की सताई हैं आंसू पीती हैं गम खाती हैं मगर घर नहीं छोड़ती —साधू १०० प्रतिशत –मगर अपने पे छोड़ दो जहां आदमी सीधा हो बात सुनने वाला हो तो आपसे घातक कोई नहीं -मीठा मीठा ऐसा काटेंगी कि बिच्छू तो क्या सांप भी शर्मा जाए –घर वालों से और आदमी के करीबी सम्बन्धी जैसे बहनें माँ तो पास भी ना फटकने पाएं –बेचारा आदमी जानता है समझता है फिर भी सहता है –मासूम संत l
आदमी काम पे जाता है, कमा के लाता है ,दुनिया के मिज़ाज़उठाता है ,घर के लिएL पूरेघर की खुशी -मुंह के निवाले के लिए ,जो भी कमाता है झोंक देता है घर के चूल्हे की आग में ,औरत का क्या- घर में रहती है, सास से लड़ती है- बच्चों से खेलती है ;घर का काम ऐसा भी क्या. चैन से रहती है- बिस्तर तोड़ती है .ऊपर से हर वक़्त बीमारी का रोना ,मायके की चिंता ,गहने तोड़वाना ,बनवाना; हरवक्त किटकिट ,हर वक़्त रोना –दंश ही दंश– पर जहां अपने पे आता है ,औरत के रिश्तों से काट देता है ,अपनी तो अपनी ,पत्नी की कमाई को भी अपना मान के चलता है दुनिया दारी का चाहे abc न पता हो -खुद को सबसे बुद्धिमान मान लेता है .कोई व्यसन हो तो फिर तो करेला और भी नीमचढ़ा. बच्चे कैसे जन्मे कैसे बढे चाहे पता ना हो पर फैसले आप ही लेंगे बच्चे अच्छे तो आपके खुद न खास्ता खराब हुए तो बीबी और उसकी सात पुश्तें तर जाएंगी –ज़रा देखें साधुको बिच्छू और बिच्छू को साधू का रूप धरते !!
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