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कितने बिच्छू कितने साधू –1

kavita
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बिच्छू और साधू
एक था बिच्छू ,एक था साधू बिच्छू बारम्बार काटता  साधू बारम्बार उठा के ,पानी की लहरों से निकाल किनारे पर सुरक्षित रखता –बिच्छू तो फिर बिच्छू है जानवर है वो अपना स्वभाव नहीं छोड़ता तो मैं कैसे छोड़ूँ मानव हो कर श्रेष्ठ हो कर
यहां कौन है बिच्छू और कौन है साधू –एक घर में, एक परिवार में ,एक देश में, एक समाज में -कितने बिच्छू कितने साधू -सभी बिच्छू सभी साधू ;मगर लगे हैं सभी ,पूरी ताकत से खुद को साधू और दूसरे को बिच्छू साबित करने में -जंग जारी है ,जारी रहेगी –समाज को ही ले लो ,आज के ताजा समाचारों को ही ले लो ,आमिर खान को ले लो या पुरस्कार वापसी को ले लो -हर व्यक्ति की अपनी अपनी राय मगर सब सही ;अपनी अपनी जगह ;हर आदमी साधू अपनी जगह — वो आज साधू हैं; दंश पीड़ित हैं, उन्हें धमकाया जा रहा है त्रस्त हैं ,भयभीत हैं उनसे -जिन्होंने नज़रें उतारी सर पे बैठाया -मगर साधू हैं ,भागेंगे नहीं; गर्व है देश पर –बिच्छू का तो काम है दंश देना –तब बिच्छू थे  या वहाँ बिच्छू थे जब और लोग मारे काटे जलाये जा रहे थे लड़कियों के मोल भाव किये जा रहे थे धर्म के नाम पर फतवे जारी किये जा रहे थे ट्रेन की बोगियां जलाई जा रही थीं तब आप बिच्छू थे और आज के बिच्छू साधू –आज तक सारी सरकारें धर्मनिरपेक्षता के नाम पर ,अल्पसंख्यक के नाम पर जो करती आयी ,दंश देती आईं संविधान की चूलें हिलाती आईं -एक आत ताई की बनायी मस्जिद को करोड़ों बहुसंख्यको की भावनाओं से ऊपर रखने का मसला हो या की देश की आर्थिक योजनाओं को आबाादी नियंत्रण न हो पाने के कारण लगता ग्रहण –तब आप बिच्छू थे दंश आपके थे सह कोई और रहे थे –वो साधू थे   न न ये मेरे तर्क नहीं विचार नहीं कुछ साधुओं के हैं बिच्छुओं के नहीं –उनके विचार तो यूँ भी कोई नहीं सुनता लिहाज़ा हर कौम साधू है बिच्छू कोई नहीं—क्रमश:

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