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दिवाली निर्धन की -दिवाली हर जन की ?

kavita
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कहाँ रौशनी की जगमग कहाँ आतिशों का शोर
कहाँ कहकहों की बारिश कहा व्यंजनों की सोंध
जिसको मयस्सर हो न दो वक़्त की भी रोटी
वो भी क्यों आज खुश है बात जानने की है तो -!!

19527_544609385691259_5261687532736669643_nरौशन उसका घर हो के न हो उजालों से मुलाकात तो हो पाएगी
झालर से उसका घर न सजे गली सामने की रौशन तो हो जाएगी
हसरतें बच्चो की पूरी न हो न सही आतिशें देखने को तो मिल जाएगी
निवालों को रोज तरसते हैं जो जूठन  कुछ उनके मुंह को तो मिल जाएगीजगम

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