kavita
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दिन रात चलता ये शहर, सदियों से जगता ये शहर ,
गुमनाम गलियों का ये शहर ,हर जन का प्यारा ये शहर l
ये गंगा किनारे बसता शहर,ये नदिया के धारों पे तिरता शहर ,
हर सुबहा से पहले जगता शहर ,कब है ये सोता मेरा शहर
निःशब्द कोलाहल से पटता शहर , महादेव का प्यारा ये हँसता शहर
मरने वालों को बैकुंठ देता शहर, है महाकाल का ये पावन शहर l
माँ गंगा किनारे का अनुपम शहर, ज्ञान का पुंज सदियों से अपना शहर
हर सुबह का सफर है ये अपना शहर, हर सहर की सहर है ये अपना शहर l
चौराहो औ गलियों में बसता शहर ,कचौरी जलेबी से भीना शहर
गंग जमुनी तहज़ीब का नज़ारा शहर ,हर शहर से है न्यारा बनारस शहर l
फोटोज़ साभार ‘बनारस समाचार’ से
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