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अस्तित्व

kavita
kavita
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अस्तित्व कहाँ ?कहाँ है मेरा वज़ूद ?
यह नीड़ मेरा है भी कि नहीं –?
आज भी -अगर सब कुछ तुम्हारा है
तो फिर मेरा क्या है —?
इक सफर जो हमने
शुरू किया था साथ साथ
एक घर जो हमने बनाया साथ साथ —
एक नींव जिसमें सधती रही मैं
और रचते रहे तुम गुम्बद चौबारे
आज भी घर मेरा कहलाता है
और जाना तुम्हारे नाम से जाता है
आज भी इतनी साधना इतनी तपस्या
इतनी ताबेदारी इतनी वफादारी
के बदले मेरा क्या है –?

तुमने मुझे छत दी
आसरा दिया सर पे आँचल दिया
मैंने तुम्हें घर दिया परिवार दिया
जंगल सी इस दुनिया में सर छुपाने को
अपना कहने को एक कोना दिया
तुम्हारे अंश को
अपने में जिला कर
तुमको ही सौंप दिया
और तुम दे न सके मुझको
स्वाभिमान मेरा
पग पग पर करते हो अपमान मेरा
पूछते हो आज भी
कि मुझको दोगी क्या
दे सकती हो क्या
जो है सब मेरा ही तो है
इस घर में तेरा क्या है ?
मैं खुश फहमी में जीती रही
घर को अपना कहती रही
सुलगती जलती रही राख में बदलती रही
और आज
मेरा कुछ भी नहीं
और आज मैं कुछ भी नहीं
वाह रे पुरुष वाह री तदबीर
वाह री औरत आह ये तकदीर !!

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