kavita
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खाली ज़िंदगी ,खाली किनारे ;
नदिया से बहुत दूर बहते ये धारे
सूनी शामों के धुंधलके
बीतती रातों में गिने हुए अनगिन तारे
किस किस का जवाब मांगूं
किस किस का हिसाब दोगे तुम
बीतने थी- बीत गयी–
खर्चनी थी, खर्च दी….ज़िंदगी;
फ़क़त – इक अट्ठनी ही तो थी !
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