kavita
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झूमते पेड़ों से लटकी वो सतरंगी सपनो की लड़ी
सावन की बरसती फुहारों में गुनगुनाती वो बारिश की धुनें
घूमती फिरती गरजती बरसती आहटें
वो उनके जाने के डर से हिलती साँसों की थरथराहटें
वो उनके आने की आहटों से बजती धुप की सरगमें
वो खुली रातों में उनकी आँखों से चाँद तकना
और यूँ ही सितारों को सारी सारी रात टकटकी लगा के देखना
इक झरोखे से उनके दीदार का मंज़र
और शुकराने में झुकी पलकों की चिलमनों से झांकती सी हंसी
याद है सब -हर एक मंज़र ,नक्श ,पल ,मौसम ,जुदाई
इक नदी के शरुआती सफ़र में निकलती
दूध से उजली धारा की तरह
राह की गन्दगी की तो छुवन भी नहीं इसकी यादों में
जब भी तुझको याद करते हैं इक दुआ का ख़याल आता है
मेरी साँसों से निकली तेरी हमसफ़र थी
इक तार तेरे मेरे दरमियान
दुआओं में बहते आंसुओं का रिश्ता —-
–समझना/समझाना बेहद मुश्किल है !
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