kavita
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अंतर कालों का नहीं खेमो का है
बंटे हुए अलग अलग खेमों में/
अपने अपने आधे अधूरे स्वार्थों को
आदर्शों के नाम दे कर
कुछ सहूलियतों के लिए रखते हैं गिरवी
मन की जुबान को
जानते हैं की कुछ कहीं गलत हो रहा है
मगर मूँद लेते हैं आँखें
अपनी प्रतिमा को अक्छुण रखने के लिए
वही –सहज समभाव वाली प्रतिमा
होने को तो राम भी
किसी के लिए रावण किसी के भगवान् थे
वक़्त किसी का नहीं होता
सफलता और असफलता ही
विशुद्ध पैमाने हैं सामाजिकता के
जो सफल सो नायक नही तो खलनायक –
/हमआप नहीइतिहास बोलताहै-/
-बरसों बरसों–युगों युगों
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