अमनपसंद -मज़हबी –? kavita ...जिस्म अब ख़त्म हो और रूह को जब सांस आये .. मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको ..... इन मजहबी झगड़ों के भी कोई मज़हब हैं क्या ?
/कुछ उसूल -?थोड़े भी -?
नहीं न, सारे उसूल कहाँ खो जाते हैं –
जब मज़हब सर चढ़ के बोलता है .
कोई किताब याद नहीं आती
कोई सफे नहीं पलटते ==
कुछ भी याद आता नहीं तुम्हें
दींन -ओ-ईमान के वो बड़े बड़े लफ्ज़
जिनका वास्ता अभी कल ही तो दिया था तुमने
अपने पेगम्बर के अमन का संदेशा
कुछ रोज़ हुए सुनाया था तुमने
हमने तो मान लिया था
हो सकता है के अमन पसंद हो तुमको
—– मगर क्या सचमुच ?
आज तक –आज तक—
-ऐ धर्म ओ मज़हब के रखवालो
क़त्ल ओ गारद केमत्वालो
खून पी कर अपनी प्यास बुझाने वालो —
बड़े से बड़े झगडे ने इतने क़त्ल न किये होंगे
जितने तुमने किये हैं
किसी बम से बच्चे इतने न मरे होंगे
जितने तुमने मारे हैं
औरतें इतनी न लुटी होंगी
जितनी तुमने लूटी हैं
घर इतने न उजड़े होंगे
जितने तुमने उजाड़े हैं —
कभी सोचा है –क्या मुंह ले के उसके दरबार में जाओगे तुम
कैसे नज़रें उन मासूमों से मिला पाओगे उसके सामने
क्या वो तुम्हारा खुदा मेरा भगवान् –
ये भी फिरकापरस्त हो गए हैं
जो माफ़ कर देंगे तुम्हें
मुझे तो नहीं लगता
तुम्हें लगता हो शायद तभी तो —
तभी तो तुम कर सकेहो वोसबकुछ जोतुमनेकियाहै–
उपरवाले को भी शायद इसमें कुछ मज़ा मिलता हो
तभी तो बना रखेहैं इतनेसारे फिरके
या होसकताहै उसके पोपुलेशन कंट्रोल का
ये भी एक ज़रियाहो –वरनाआदमीतोएकबनायाथाउसने
देह तो एक ही बनायीथी सर इतने क्यूँ बना दिए
किसी पे टोपी किसी पे पगड़ी
कहीं टीका कही दाढी
कोईअमनपसंद–कोई दहशतगर्द!
इन मजहबी झगड़ों के भी कोई मज़हब हैं क्या ?
/कुछ उसूल -?थोड़े भी -?
नहीं न, सारे उसूल कहाँ खो जाते हैं –
जब मज़हब सर चढ़ के बोलता है .
कोई किताब याद नहीं आती
कोई सफे नहीं पलटते ==
कुछ भी याद आता नहीं तुम्हें
दींन -ओ-ईमान के वो बड़े बड़े लफ्ज़
जिनका वास्ता अभी कल ही तो दिया था तुमने
अपने पेगम्बर के अमन का संदेशा
कुछ रोज़ हुए सुनाया था तुमने
हमने तो मान लिया था
हो सकता है के अमन पसंद हो तुमको
—– मगर क्या सचमुच ?
आज तक –आज तक—
-ऐ धर्म ओ मज़हब के रखवालो
क़त्ल ओ गारद केमत्वालो
खून पी कर अपनी प्यास बुझाने वालो —
बड़े से बड़े झगडे ने इतने क़त्ल न किये होंगे
जितने तुमने किये हैं
किसी बम से बच्चे इतने न मरे होंगे
जितने तुमने मारे हैं
औरतें इतनी न लुटी होंगी
जितनी तुमने लूटी हैं
घर इतने न उजड़े होंगे
जितने तुमने उजाड़े हैं —
कभी सोचा है –क्या मुंह ले के उसके दरबार में जाओगे तुम
कैसे नज़रें उन मासूमों से मिला पाओगे उसके सामने
क्या वो तुम्हारा खुदा मेरा भगवान् –
ये भी फिरकापरस्त हो गए हैं
जो माफ़ कर देंगे तुम्हें
मुझे तो नहीं लगता
तुम्हें लगता हो शायद तभी तो —
तभी तो तुम कर सकेहो वोसबकुछ जोतुमनेकियाहै–
उपरवाले को भी शायद इसमें कुछ मज़ा मिलता हो
तभी तो बना रखेहैं इतनेसारे फिरके
या होसकताहै उसके पोपुलेशन कंट्रोल का
ये भी एक ज़रियाहो –वरनाआदमीतोएकबनायाथाउसने
देह तो एक ही बनायीथी सर इतने क्यूँ बना दिए
किसी पे टोपी किसी पे पगड़ी
कहीं टीका कही दाढी
कोईअमनपसंद–कोई दहशतगर्द!
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