kavita
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नज्मों की बारिशें—
–क्या आसमानों से आती हैं ?
नज्मों की गलियाँ भीगी सी हैं –
ये बे मौसम बरसातें हैं
बस मन को भिगो जाती हैं
गड्ढे हैं कुछ अनजाने से
मोड़ हैं कुछ कुछ न पहचाने से
पत्थर किसी की बेरुखी के हैं
रौशनी किसी उम्मीद की
अँधेरे मायूसी के हैं
जो गुजरता है किसी नज़्म से
भावनाओं की बारिशें
और नाउम्मीदी के अँधेरे
छूते उसे भी तो ज़रूर हैं
बस इसीलिये अफ़सोस है मुझे –
—-मुझे अफ़सोस है सचमुच —!
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