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पैमाइशें-अहसासों की

kavita
kavita
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पैदाइशें नफरतों की कभी अच्छी नहीं होतीं फिर
मोहब्बतों से इस कदर क्यूँ दुनिया को रंज है
हर कौम तेरी इनायत है दुनिया को ऐ खुदा
फिर हर कौम को हर कौम से क्यों इतना तंज़ है
हर बीज के माथे पे लिख दो पैगामे मोहब्बत 
हर ज़मीं को अपने प्यार के अमृत से सींच दो
फसल लहलहाने दो इंसानियत की गुलशन में
और ज़न्नतों को दुनिया में आने का सबब दो

मोहब्बतों को ना कभी नस्लों का नाम दो
न कभी इसको जेहाद बनाओ
जब मिलती है जहां मिलती है एक इतिहास बनाओ
क्यूँ उम्र के हों बंधन क्यूँ जात के हों झगडे
गर अहसासों की पैमाइशें नफरतों से न हों
कहीं तो यारों ऐसा कुछ करो- कि
दिल को खुला छोडो और दमागों को चैन दो

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