kavita
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भावनाओं का वार ,पानी की धार
जैसे तीखी कटार
कभी मंद मधुर
मीठी कोमल स्मित सा
कभी विकराल काल ,लहरों का जाल
भावनाए भी तो यही है; वही हैं
कहीं मृदु तरल सी
कहीं निर्बंध ;वेगवती धारा सी
कहीं सरस्वती सी ;विलुप्तप्राय ,गोपनीय
कहीं निर्झरिणी ,उत्फुल्ल, बेचैन
बहा जाने को आतुर ,सभी कुछ
तीव्रता में विनाश है, सैलाब है
मंद ,मधुर, नियंत्रित ही जीवन है
एक पानी, एक मन; भाव हैं ,लहरें हैं
संयम ही जीवन है;
दर्द है ,गहराई है ;ठहरा हुआ सा वेग है ;
ऊपर निस्पंद है ,ठहराव है
कुछ थपेड़े वक़्त के
हिला जाते हैं पानी की चादर को
उछल के आते हैं लहरों से
कुछ छीटे गए वक्तों के
— भिगो कर जाते हैं
फिर सब खामो-श ————ख़ामो —–श —–!
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