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खाली फ्रेम —

kavita
kavita
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मैंने भेजा है तुम्हें,

एक खाली फ्रेम-

ठीक अपने मन की तरह;

कोई नहीं है वहाँ -कोई नहीं-!

हाँ ,तुम भी नहीं;

मन है मेरा ,कोई मांग नहीं

कि दुनिया के लिए

सजा लूं इसे ,किसी भी नाम से ,रंग से

मेरा कोना है ये ,मेरा अपना;

खाली है ,खाली ही रहने दो इसे

मत जाल बिछाओ अपने

मत बढाओ  हाथ अपने, मदद के,

क्यूंकि हर जाल में चारा है

और हर हाथ में है खंजर-

कोई मदद निस्वार्थ नहीं होती,

मीठे बोलों में व्यापार दिखाई देता है

भरोसा उठ चुका है तुम से,

तौल लेने दो मुझे

क्यूँ करते हो तुम प्यार की बातें

रहने तो मुझे अकेला…….

मुझे नहीं है जरूरत

किसी सहारे की -मन के भी;

रहने दो खाली

मन के फ्रेम को मेरे -रहने दो…..

यही तो भेजा है मैंने तुम्हें,

एक खाली फ्रेम,

अपनी दीवारों से उतार कर –!

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