kavita
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आज एक औरत मर गई –सधवा! ओह ,
कितना बड़ा था सौभाग्य उसका —!
विदा करने से पहले सजाया गया
सुहागिनों ने श्रिंगार किया उसका —– पूरे सोलह शृंगार
भूरी भूरी प्रशंसा की उसके भाग्य की
रश्क किया उसकी– मौत से;
विदा करने से पहले,
जीवित पति ने सिंदूर दान किया –
हिचकियों की बाढ़ आ गई
महिलाएं तो अश्रुप्लावित हो ही गईं
पुरुष वर्ग भी आर्द्र हो उठा
———और मैं कमबख्त ,
ऐसे वक़्त भी ना भूल सकी
उस जीवित औरत को-
बदन के नील का दर्द
रातों में सोने नही देताजब
तो दवा मांगने आती थी जो
पति के पर्स्त्रीगमन की पीड़ा को
बांटने आती थी जो
बच्चों की भूख देखी नही जाती
तो रोटी मांगने आती थी जो
दिखाई दी मुझे तो आज भी वही स्त्री
दमकते शृंगार और खैरात के सिंदूर में ;
और –औरों की तरह
उसके सौभाग्य को बांटने की कामना
न कर सकी–मैं
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