kavita
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मंज़िलों के निशान मिलने लगे हैं
आरज़ूओं की भी ज़ुबान होती है
इनकी अपनी अज़ान होती है
सीधे खुदा से मिलती है
हर रात की सुबह जरूर होती है
देर हो जाये तो क्या बसर तो होती है
सूरज कल को ज़रूर निकलेगा
एक सुबहा सपनों को मिलेगी
हसरतों का वादा है ये
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