यादों की छांव तले – kavita ...जिस्म अब ख़त्म हो और रूह को जब सांस आये .. मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको ..... इक बंद तिज़ोरी सपनो की
जैसे गलती से है खुल बैठी
दो चार यहाँ दो चार वहाँ
हर कोने से हर नुक्कड़ से
कुछ लुके छिपे कुछ भूले से
कुछ आंसू में धुंधलाये से
कुछ बोझिल तेरी यादों से
कुछ हैं मुस्काते यादों में
कुछ बांह पसारे आये हैं
कैसे इनको अब बाँध के मैं
पिंजरे में फिर से बंद करून
घुट जाएँ इनकी सांसें तो
क्या हमखुश भी रह पाएंगे
इन यादों को इन सपनो को
जो कुछ मिले कभी
कुछ मिल न सके
चुन चुन कर अब इक
चूनर सी सिलवाई है
डाल के इसको चेहरे पर
अब हम भी इनकी छाया में चलते हैं
क्या हुआ अगर ये मिल न सके
क्या हुआ अगर वो मिल न सके
इक बंद तिज़ोरी सपनो की
जैसे गलती से है खुल बैठी
दो चार यहाँ दो चार वहाँ
हर कोने से हर नुक्कड़ से
कुछ लुके छिपे कुछ भूले से
कुछ आंसू में धुंधलाये से
कुछ बोझिल तेरी यादों से
कुछ हैं मुस्काते यादों में
कुछ बांह पसारे आये हैं
कैसे इनको अब बाँध के मैं
पिंजरे में फिर से बंद करून
घुट जाएँ इनकी सांसें तो
क्या हमखुश भी रह पाएंगे
इन यादों और इन सपनो में
कुछ मिले कभीकुछ मिल न सके
चुन चुन कर अब इन सपनों को
हमने यादों के धागे से
इक चूनर सी सिलवाई है
डाल के इसको चेहरे पर
इस की छाया में चलते हैं
क्या हुआ अगर ये; मिल न सके
क्या हुआ अगर- वो;मिल न सके
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