याद वो बचपन की –मदर्स डेस्पेशल kavita ...जिस्म अब ख़त्म हो और रूह को जब सांस आये .. मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको ..... खुले आकाश के नीचे ,चाँद तारों की छाँव में, लेट कर;
माँ की बाहों का तकिया बना कर
कहानी सुनते कि पहाड़े सुनाते थे –
कभी कविताकी जुगलबंदी, कभी स्पेलिंग की आजमाइशें
कभी हिटलर के थे किस्से ,तो कही भूगोल की थी पैमाइशें
कहीं भैय्या की डांटें थीं ,कहीं थी माँ की प्यारी झिड़कियां
खाने की वो मनुहारें ,खेलने को तो पूरा जग था
आज भी दिल में कसक जाती हैं -यादें बचपन की
जब घूमते ,टहलते- मेरे आँगन में आ जाती है
खुले आकाश के नीचे ,चाँद तारों की छाँव में, लेट कर;
माँ की बाहों का तकिया बना कर
कहानी सुनते कि पहाड़े सुनाते थे –
कभी कविताकी जुगलबंदी, कभी स्पेलिंग की आजमाइशें
कभी हिटलर के थे किस्से ,तो कही भूगोल की थी पैमाइशें
कहीं भैय्या की डांटें थीं ,
कहीं थी माँ की प्यारी झिड़कियां
खाने की वो मनुहारें ,खेलने को तो पूरा जग था
आज भी दिल में कसक जाती हैं -यादें बचपन की
जब घूमते ,टहलते- मेरे आँगन में आ जाती है
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