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मौत- एक डरावना लफ्ज़ —

kavita
kavita
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मौत- एक डरावना लफ्ज़ —
क्यों ज़िंदगी से बढ़ कर कोई मौत को चाहे
क्या रास्ते ख़त्म हो गए -मंज़िलें ख़त्म हो गयीं
एक मंज़िल नहीं मिली तो क्या
ज़िंदगी से हार जाएँ
मुकाम कुछ और तय हैं तुम्हारे लिए
बस रुको मत थको मत हारो मत
किसी को हो न हो तुम तो खुद में भरोसा रखो
याद रखो कुदरत ने जन्म दिया है तुमको
और पाला है बड़ी तदबीरों से
ऐसा नहीं कि वो भूल गयी है तुमको
ऐसा लग सकता है तुमको
कि छोड़ रखा है उसने तुम्हें
मगर सोचो
गिरके उठोगे खुद से तो सम्हल के चलोगे
बैसाखी पे किसी की आखिर कब तक चलोगे
खुद से लड़ कर पाओगे वो अपना होगा
डरो नहीं पूरा हर एक सपना होगा
धीरज रखने की जरूरत है
तुम हो
तो जग है
हर गलती इक सबक है
जाने वाले को कोई रोक नहीं सकता
उसका गम अपने दिल पे क्यों लेते हो
उसने जो की वोही गलती तुम भी क्यों करते हो
वो डूबा गहरे सन्नाटों में
तुम डूबते जाओ हलाहल में
ये तो कोई राह नहीं है
खुद को सम्हालो और पुरुषार्थ करो
न हताश हो न
निराश करो
अपने तो फिर अपने हैं
मान जायेंगे
भरोसा खुद पे फिर  एक बार करो
मौत- एक डरावना लफ्ज़ —
क्यों ज़िंदगी से बढ़ कर कोई मौत को चाहे
क्या रास्ते ख़त्म हो गए -मंज़िलें ख़त्म हो गयीं
एक मंज़िल नहीं मिली तो क्या
ज़िंदगी से हार जाएँ
मुकाम कुछ और तय हैं तुम्हारे लिए
बस रुको मत थको मत हारो मत
किसी को हो न हो तुम तो खुद में भरोसा रखो
याद रखो कुदरत ने जन्म दिया है तुमको
और पाला है बड़ी तदबीरों से
ऐसा नहीं कि वो भूल गयी है तुमको
ऐसा लग सकता है तुमको
कि छोड़ रखा है उसने तुम्हें
मगर सोचो
गिरके उठोगे खुद से तो सम्हल के चलोगे
बैसाखी पे किसी की आखिर कब तक चलोगे
खुद से लड़ कर पाओगे वो अपना होगा
डरो नहीं पूरा हर एक सपना होगा
धीरज रखने की जरूरत है
तुम हो
तो जग है
हर गलती इक सबक है
जाने वाले को कोई रोक नहीं सकता
उसका गम अपने दिल पे क्यों लेते हो
उसने जो की वोही गलती तुम भी क्यों करते हो
वो डूबा गहरे सन्नाटों में
तुम डूबते जाओ हलाहल में
ये तो कोई राह नहीं है
खुद को सम्हालो और पुरुषार्थ करो
न हताश हो न
निराश करो
अपने तो फिर अपने हैं
मान जायेंगे
भरोसा खुद पे फिर  एक बार करो

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