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मन तो खामोश है

kavita
kavita
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मन में हलचल है बड़ी शब्द खामोश हैं
ज़िंदगी का धुआँ तिरता आँखों में है
बदली मासूम सी तेरे आँगन में थी
आज उसकी नमी है कहाँ खो गई
उड़ते पाखी मनके आसमानों में थे
नील अंबर में चाँद छुप गया था कहीं
शाम खामोश थी तूफान आने को था
पर पखेरू को इसकी खबर ही नही
हर तरफ उड़ते फिरते हैं तिनके यहाँ
धूल है कितनी कितना गर्दो गुबार है
हर तरफ शोर है इतना की क्या कहें
शब्द अपने ही खो जाते हैं जाने कहाँ
आदमी को आदमी से बैर इतना है क्यूँ
जिधर देखो उधर धर्मों के झगड़े हैं क्यूँ
राग खो जाते हैं रागिनी खामोश है
शोर है तो बहुत दुनिया में मगर
मन तो खामोश है , मन तो खामोश है ।
मन में हलचल है बड़ी शब्द खामोश हैं
ज़िंदगी का धुआँ तिरता आँखों में है
बदली मासूम सी तेरे आँगन में थी
आज उसकी नमी है कहाँ खो गई
उड़ते पाखी मनके आसमानों में थे
नील अंबर में चाँद छुप गया था कहीं
शाम खामोश थी तूफान आने को था
पर पखेरू को इसकी खबर ही नही
हर तरफ उड़ते फिरते हैं तिनके यहाँ
धूल है कितनी कितना गर्दो गुबार है
हर तरफ शोर है इतना की क्या कहें
शब्द अपने ही खो जाते हैं जाने कहाँ
आदमी को आदमी से बैर इतना है क्यूँ
जिधर देखो उधर धर्मों के झगड़े हैं क्यूँ
राग खो जाते हैं रागिनी खामोश है
शोर है तो बहुत दुनिया में मगर
मन तो खामोश है , मन तो खामोश है ।

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