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तेरा वज़ूद

kavita
kavita
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ज़र्रे ज़र्रे में फैला है गोशे गोशे में छाया है
तेरा वज़ूद है अब भी क्यों हर तरफ मेरे छितराया सा
कुछ यादें- हैं ,कुछ वादे – थे ,बिखरे बिखरे से हर कतरे में
जिन की यादों का धूआं कल इन आँखों में कड़ुआया था
ये नीम खलिश सी सीने में कम्बख्त अभी तक है बाकी
फिर क्यूँ हमको इस दिल की जगह इक गहरा कुआँ लगता था
आवाज़ें थीं सन्नाटों की, गहराई थी ,सूना पन था
गूँज थी अपनी  बातों की, धड़कन की ,मुस्कानो की .
अब आज कहीं ये जा के लगा तू अब भी मुझ में जीता है
सांसें जो मेरी आती हैं -सब तुझको छू कर आती हैं
तेरी ही महक है जो चारों तरफ इस महफ़िल में छाई सी है
माजी के स्याह अंधेरों में अबछाई कुछ अरुणाईसी   है
ज़र्रे ज़र्रे में फैला है गोशे गोशे में छाया है
तेरा वज़ूद है अब भी क्यों हर तरफ मेरे छितराया सा
कुछ यादें- हैं ,कुछ वादे – थे ,बिखरे बिखरे से हर कतरे में
जिन की यादों का धूआं कल इन आँखों में कड़ुआया था
ये नीम खलिश सी सीने में कम्बख्त अभी तक है बाकी
फिर क्यूँ हमको इस दिल की जगह इक गहरा कुआँ लगता था
आवाज़ें थीं सन्नाटों की, गहराई थी ,सूना पन था
गूँज थी अपनी  बातों की, धड़कन की ,मुस्कानो की .
अब आज कहीं ये जा के लगा तू अब भी मुझ में जीता है
सांसें जो मेरी आती हैं -सब तुझको छू कर आती हैं
तेरी ही महक है जो चारों तरफ इस महफ़िल में छाई सी है
माजी के स्याह अंधेरों में अबछाई कुछ अरुणाईसी   है

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