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मोदी एक नेतृत्व-मेरे विचार (कॉन्टेस्ट -कैसी हो आगामी सरकार )-2

kavita
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आइये अब बात करते हैं मोदी ही क्यों- या कहें कि भाजपा भी नहीं- सिर्फ मोदी ही क्यों –इस बार सिर्फ मोदी क्यों –?अब भाजपा की बात करें या मोदी की ;तो पहले सांप्रदायिकता पर बात करना अति आवश्यक है क्योंकि भाई, भाजपा और सांप्रदायिकता का तो चोली दामन का साथ है- ऐज़ पर आल अदर पार्टीज़ ओपीनियन;– पहले तो हम ये जान लें की ये सो काल्ड सांप्रदायिकता आखिर है किस चिड़िया का नाम –हमारे देश में बहुत सारे धर्म हैं, संप्रदाय है, जातियाँ हैं ;सबकी अपनी सोच है, धर्म पद्धतिया हैं ;जो इन्हें समभाव से देखे ,वो धर्म निरपेक्ष है, जो इनमें भेद भाव करे वो सांप्रदायिक –कृपया ध्यान रखें ये समालोचना आज के समय को ध्यान में रख कर की जा रही है –हाँ तो मुझे बताएं कि  आज कौन सी पार्टी है जो धर्म और जाति  का कार्ड नही खेल रही -कॉंग्रेस /सपा /बसपा और याकि  आप’  -इन सब को आप बारी बारी मुस्लिम धर्म गुरुओं ,मतदाताओं को रिझाने की कोशिश करते और धर्म केट्रूम्प  कार्ड खेलते रोज देख रहे हैं । सरकारी योजनाएँ ,छात्रवृत्तियाँ, धर्म, जाति  के नाम पर चलाई जा रही हैं । आयोजनों में धार्मिक टोपियाँ बदली जा रही हैं लेकिन ये सांप्रदायिकता नही है –हाँ क्योंकि भूले से भी ये हिन्दू शब्द का उच्चारण नही करते ;मुस्लिम टोपी धार्मिकता का प्रतीक है मगर भगवा चोला और पगड़ी सांप्रदायिकता का –ऐसा क्यों >इस्लामिक पार्टी मुस्लिम लीग सांप्रदायिक नही मगर हिन्दू महासभा घोर सांप्रदायिक –ऐसा क्यों ?तो इस आधार पर भाजपा सांप्रदायिक है क्योंकि वो हिन्दू शब्द के उच्चारण से डरती नही कम से कम।  किसी भी धर्म और जाती के हों आप ध्यान से गुनिए इन प्रश्नो को, जवाब आपको खुद -ब-खुद मिल जाएगा कि  कौन कितना सांप्रदायिक है
गोधरा कांड अरे नही नही गुजरात दंगे के आरोप लगते रहते हैं मोदी जी पर मगर कहने वाले ये भूल जाते है  बड़ी ही सुविधाजनक ढंग से कि उसकी शुरुआत कहाँ से हुई और क्यों –गोधरा कांड एक ऐसी घटना  थी जिसने बारूद के ढेर में चिंगारी का काम किया- 57 कार सेवक जिंदा जला दिये गए –एक चीज है मौब  मेंटेलिटी  किसी भी दंगे केलिए ,विद्रोह में, इसकी अहम भूमिका होती है ;जब उफान पर हो तो इसे रोकना लगभग असंभव होता है।  यही हुआ था 1947 के दंगों में,  84 के हिन्दू सिक्ख  कांड में;  और अब गुजरात दंगो में ;हर क्रिया कि प्रतिक्रिया होती है; बड़ा सामान्य सा सिद्धान्त है, जितनी बड़ी क्रिया  वैसी ही प्रति क्रिया ;लेकिन यहाँ हमारे तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोग क्रिया अर्थात गोधरा कांड को एकदम नेपथ्य में डाल देते हैं।  यहाँ मैं आपसे ये जानना चाहूंगी कि गोधरा कांड के बाद के गुजरात दंगों और श्रीमती इन्दिरा गांधी के कत्ल के बाद हुए सिखों के कत्लेआम में क्या अंतर पाते  हैं आप ? दोनों ही जनता के रिएक्शन थे ;एक अन्याय का प्रतिकार, दूसरा अन्याय कर के; ;जो मारे गए वो हिन्दू मुसलमान और सिख नही थे, इंसान थे -जो ट्रेन में और सड़कों पर भी ;जला दिये गए ज़िंदा ;-वो भी —उन्हें दरकिनार कर सियासत का हथियार बनाना तथाकथित धर्म्निर्पेक्षतवादी सोच ही कर सकती है।  अगर मोदी हत्यारे हैं तो राजीव क्यों नही और सोनिया क्यों नही —-?
अब बात करते हैं पार्टी के अंदर की , बहुत से सवाल उठ रहे हैं, उठाये जा रहे हैं पार्टी के अंदर से ,बाहर से    कि मोदी निरंकुश हैं या इनहोने पार्टी के वयोवृद्ध नेताओं को दरकिनार कर दिया और स्वयं केंद्र में आ गए मेरे सोच थोड़ी  अलग है,  मैं समझती हूँ देश को इस वक़्त एक ऐसे हुक्मरान की जरूरत है जो हुक्म भी चला सके । विचार अलग अलग हो सकते हैं ,मगर जहां फैसला लेना हो कोई एक फैसला लेने वाला होऔर  जो उस फैसले के सारे उत्तरदायित्व; अच्छे हों या बुरे; स्वयं उठाए- अपने नीचे उभरते विरोधों को दबा सकने में समर्थ हो, अराजकता का चरम हम आज देख रहे हैं; निष्क्रिय प्रधानमंत्री का खामियाजा, हमने भुगता है हर क्षेत्र में ;रही बात भाजपा की तो उसका तो अस्तित्व ही समाप्तप्राय सा था मोदी जी का नाम पीएम के तौर पर संप्रेषित होने से पहले, लगता नही था कि  एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में अपनी अस्मिता को बचाए भी रख पाएगी/  मेरा मानना है कि नेतृत्व एक बहुत अहम गुण है जो सबमें नही होता । एक कुशल नेतृत्व किसी युद्ध में कमजोर सेना को भी विजय दिला सकता है मोदी जी का नेतृत्व ही है जिसने भाजपा को पुनर्जीवित किया है और मरती हुई इस पार्टी में प्राणवायु का संचार किया है अतः मोदी जी पर जो आरोप लगाए जा रहे हैं की उन्होने वृद्ध नेताओं को दरकिनार कर दिया है या भाजपा मोदी का पर्याय हो गई है- ठीक है चलो मान लेते हैं;   तो इसमें बुराई क्या है ?क्या आप समझते हैं कि  वयोवृद्ध नेताओ को अगर हम एक तरफ रख कर सोचें तो मोदी जी के कद का और कोई नेता दिखाता है पार्टी में-? और वृद्ध नेताओं को अगर धृतराष्ट्र की तरह पद का मोह बढ़ जाये तो किसी को तो कदम उठाना ही होगा ।  आदिकाल से ही हमने पढ़ा देखा और सुना है की सत्ता योग्यता के आधार पर अगर नही दी गई और जहां भी अन्यान्य  आधार रहे नेतृत्व चुनने के- विनाश हुए हैं या विद्रोह।  मोदी जी के अंदर नेतृत्व की खूबियाँ हैं उनके अंदर फैसला लेने की क्षमता है और स्वयं सामने रह कर उसे झेलने की भी; अपने विरोधी की कमियाँ और उसकी ताकत का अंदाज़ बखूबी लगा लेते हैं और उसके  प्रत्युत्तर के लिए तैयार रहते हैं समय से -और एक बहुत बडा  नेतृत्व का गुण ये है की लीडर हर छोटे बड़े काम के लिए खुद सामने आए ये जरूरी नही है । यही तो उसकी क्षमता है अगर हर छोटे से काम के लिए वह खुद दौड़ने लगे या धरना प्रदर्शन करने लगे तो अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य  पिछड़ जाएँगे –तो काम कैसे कराया जाये और कैसे नेतृत्व में आस्था पैदा की जाये ये इस व्यक्ति को आता है- ही इज़ ए परफेक्ट लीडर और ऐसा नेतृत्व अगर हमारे देश को मिलता है तो मुझे विश्वास है की हमारा देश प्रगति करेगा और जरूर करेगा
कुछ लोगों को ऐतराज ये भी है कि अभी तक भाजपा की तरफ से कोइघोषणापत्र प्रस्तुत नही हुआ है वैसे तो किसी से छुपा नही कि विकास ही अजेंडा है भाजपा का विकास सम्पूर्ण विकास देश का, समग्र रूप से और गुजरात उसका रोल मौडेल है, फिर कहना क्या और सुनना क्या गुजरात का विकास किसी से छुपा नही।  वहाँ की  कानून व्यवस्था ,सुरक्षा ,सड़कें, यातायात, बिजली और पानी क्या कमी है? जरा तुलना कर के देखें अपने तथाकथित धर्म निरपेक्ष प्रदेशों की स्थिति से।  एकआम  आदमी क्या चाहता है शांति से अपना काम करना और सुकून से दो समय की रोटी ;अपनी पूजा पद्धति का पालन और सुरक्षा क्या नही है वहा, और किसके लिए नही; अल्प संख्यक भी वहाँ इनही सब सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं जैसेकि  बहुसंख्यक।  क्या अब भी किसी घोषणा पत्र की जरूरत है आपको———————————————-कहने की जरूरत क्या है -जो जानते हैं जवाब मांगते नही/
वो क्या यकीन करेंगे जिन्हे एतबार नही—
तो लब्बोलुआब आप ये समझ लें की इन का कोई घोषणापत्र न भी आए तो हम जानते हैं कि विकास होगा और आप भी शायद ये कहीं अंदर से जानते हैं- मगर मानने से डरते हैं ; वफा कुछ ज्यादा ही है आपकी फितरत में वैसे भी घोषणा पत्र कि घोषणाएँ अगर वैसे ही पूरी होनी हैं जैसे दिल्ली में हुई थीं कि घोषणा करो और फिर जुआ उतार कर भाग लो तो धन्यवाद हम बिना घोषणापत्र के सिर्फ अपने आकलन पर भी वोट दे सकते हैं
अब समापन में इतना ही कहना चाहूंगी कि प्लीज़ ,प्लीज- इस बार अपने लिए नही ,अपने संकीर्ण स्वार्थों के लिए नही ,जाति  और धर्म के आधार पर नही ,अपने व्यक्तिगत हितों के लिए नही ;अपने देश के लिए मतदान करिए- क्योंकि इस बार आपका मत देश को आकाश कि ऊंचाइयों पर भी ले जा सकता है और रसातल में भी पहुंचा सकता है- प्रत्याशी का चाल चलन व्यवहार और काम ही वोट का आधार होना चाहिए -अभी वक़्त नही है फिर लिखूंगी कुछ, आज इतना ही; सिर्फ इतनी गुजारिश है कि  इस बार देश के लिए सोचें, सारे विरोधों से ऊपर उठ कर।  एक पूर्ण बहुमत और मजबूत व्यक्ति को समर्थन दें जिस से कम से कम हमारी सीमाएं सुरक्षित  रह सकें और ऐसे नपुंसकों को न चुनें जो हमारे वीर सैनिकोंके अधम हत्यारों के खिलाफ कुछ बोलने में भी कतराते हों ।                                         आज सारा समाज सिर्फ वर्ग ,जाति  ,धर्म भेद में बट कर रह गया है –आज दुनिया में सिर्फ दो वर्ग हैं, ताकतवर और कमजोर –जो ताकतवर है वो सत्ता को कंट्रोल करता है- पद  ,पैसा और ताकत हर चीज का  निर्णायक है । जो ताकत्वर है वो कभी अपने से नीचे वाले का हाथ थाम कर उसे गर्त से नही निकालता -किसी भी धर्म या जाती के लिए यही सच है समय आ गया है की हम इन तुच्छ  बातों को छोड़ कर सिर्फ और सिर्फ देश की प्रगति और संभावित आसन्न (आगे आने वाली )विपाततियों का ध्यान रखते हुए अपने देश के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करें
बाधाएँ आती हैं आयें
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ
पैरों के नीचे अंगारे
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ
निज हाथों में हँसते हँसते
आग लगा कर चलना होगा
कदम मिला कर चलना होगा –
-अटल बिहारी बाज पेयी

आइये अब बात करते हैं मोदी ही क्यों- या कहें कि भाजपा भी नहीं- सिर्फ मोदी ही क्यों –इस बार सिर्फ मोदी क्यों –?अब भाजपा की बात करें या मोदी की ;तो पहले सांप्रदायिकता पर बात करना अति आवश्यक है क्योंकि भाई, भाजपा और सांप्रदायिकता का तो चोली दामन का साथ है- ऐज़ पर आल अदर पार्टीज़ ओपीनियन;– पहले तो हम ये जान लें की ये सो काल्ड सांप्रदायिकता आखिर है किस चिड़िया का नाम –हमारे देश में बहुत सारे धर्म हैं, संप्रदाय है, जातियाँ हैं ;सबकी अपनी सोच है, धर्म पद्धतिया हैं ;जो इन्हें समभाव से देखे ,वो धर्म निरपेक्ष है, जो इनमें भेद भाव करे वो सांप्रदायिक –कृपया ध्यान रखें ये समालोचना आज के समय को ध्यान में रख कर की जा रही है –हाँ तो मुझे बताएं कि  आज कौन सी पार्टी है जो धर्म और जाति  का कार्ड नही खेल रही -कॉंग्रेस /सपा /बसपा और याकि  आप’  -इन सब को आप बारी बारी मुस्लिम धर्म गुरुओं ,मतदाताओं को रिझाने की कोशिश करते और धर्म केट्रूम्प  कार्ड खेलते रोज देख रहे हैं । सरकारी योजनाएँ ,छात्रवृत्तियाँ, धर्म, जाति  के नाम पर चलाई जा रही हैं । आयोजनों में धार्मिक टोपियाँ बदली जा रही हैं लेकिन ये सांप्रदायिकता नही है –हाँ क्योंकि भूले से भी ये हिन्दू शब्द का उच्चारण नही करते ;मुस्लिम टोपी धार्मिकता का प्रतीक है मगर भगवा चोला और पगड़ी सांप्रदायिकता का –ऐसा क्यों >इस्लामिक पार्टी मुस्लिम लीग सांप्रदायिक नही मगर हिन्दू महासभा घोर सांप्रदायिक –ऐसा क्यों ?तो इस आधार पर भाजपा सांप्रदायिक है क्योंकि वो हिन्दू शब्द के उच्चारण से डरती नही कम से कम।  किसी भी धर्म और जाती के हों आप ध्यान से गुनिए इन प्रश्नो को, जवाब आपको खुद -ब-खुद मिल जाएगा कि  कौन कितना सांप्रदायिक है

गोधरा कांड अरे नही नही गुजरात दंगे के आरोप लगते रहते हैं मोदी जी पर मगर कहने वाले ये भूल जाते है  बड़ी ही सुविधाजनक ढंग से कि उसकी शुरुआत कहाँ से हुई और क्यों –गोधरा कांड एक ऐसी घटना  थी जिसने बारूद के ढेर में चिंगारी का काम किया- 57 कार सेवक जिंदा जला दिये गए –एक चीज है मौब  मेंटेलिटी  किसी भी दंगे केलिए ,विद्रोह में, इसकी अहम भूमिका होती है ;जब उफान पर हो तो इसे रोकना लगभग असंभव होता है।  यही हुआ था 1947 के दंगों में,  84 के हिन्दू सिक्ख  कांड में;  और अब गुजरात दंगो में ;हर क्रिया कि प्रतिक्रिया होती है; बड़ा सामान्य सा सिद्धान्त है, जितनी बड़ी क्रिया  वैसी ही प्रति क्रिया ;लेकिन यहाँ हमारे तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोग क्रिया अर्थात गोधरा कांड को एकदम नेपथ्य में डाल देते हैं।  यहाँ मैं आपसे ये जानना चाहूंगी कि गोधरा कांड के बाद के गुजरात दंगों और श्रीमती इन्दिरा गांधी के कत्ल के बाद हुए सिखों के कत्लेआम में क्या अंतर पाते  हैं आप ? दोनों ही जनता के रिएक्शन थे ;एक अन्याय का प्रतिकार, दूसरा अन्याय कर के; ;जो मारे गए वो हिन्दू मुसलमान और सिख नही थे, इंसान थे -जो ट्रेन में और सड़कों पर भी ;जला दिये गए ज़िंदा ;-वो भी —उन्हें दरकिनार कर सियासत का हथियार बनाना तथाकथित धर्म्निर्पेक्षतवादी सोच ही कर सकती है।  अगर मोदी हत्यारे हैं तो राजीव क्यों नही और सोनिया क्यों नही —-?

अब बात करते हैं पार्टी के अंदर की , बहुत से सवाल उठ रहे हैं, उठाये जा रहे हैं पार्टी के अंदर से ,बाहर से    कि मोदी निरंकुश हैं या इनहोने पार्टी के वयोवृद्ध नेताओं को दरकिनार कर दिया और स्वयं केंद्र में आ गए मेरे सोच थोड़ी  अलग है,  मैं समझती हूँ देश को इस वक़्त एक ऐसे हुक्मरान की जरूरत है जो हुक्म भी चला सके । विचार अलग अलग हो सकते हैं ,मगर जहां फैसला लेना हो कोई एक फैसला लेने वाला होऔर  जो उस फैसले के सारे उत्तरदायित्व; अच्छे हों या बुरे; स्वयं उठाए- अपने नीचे उभरते विरोधों को दबा सकने में समर्थ हो, अराजकता का चरम हम आज देख रहे हैं; निष्क्रिय प्रधानमंत्री का खामियाजा, हमने भुगता है हर क्षेत्र में ;रही बात भाजपा की तो उसका तो अस्तित्व ही समाप्तप्राय सा था मोदी जी का नाम पीएम के तौर पर संप्रेषित होने से पहले, लगता नही था कि  एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में अपनी अस्मिता को बचाए भी रख पाएगी/  मेरा मानना है कि नेतृत्व एक बहुत अहम गुण है जो सबमें नही होता । एक कुशल नेतृत्व किसी युद्ध में कमजोर सेना को भी विजय दिला सकता है मोदी जी का नेतृत्व ही है जिसने भाजपा को पुनर्जीवित किया है और मरती हुई इस पार्टी में प्राणवायु का संचार किया है अतः मोदी जी पर जो आरोप लगाए जा रहे हैं की उन्होने वृद्ध नेताओं को दरकिनार कर दिया है या भाजपा मोदी का पर्याय हो गई है- ठीक है चलो मान लेते हैं;   तो इसमें बुराई क्या है ?क्या आप समझते हैं कि  वयोवृद्ध नेताओ को अगर हम एक तरफ रख कर सोचें तो मोदी जी के कद का और कोई नेता दिखाता है पार्टी में-? और वृद्ध नेताओं को अगर धृतराष्ट्र की तरह पद का मोह बढ़ जाये तो किसी को तो कदम उठाना ही होगा ।  आदिकाल से ही हमने पढ़ा देखा और सुना है की सत्ता योग्यता के आधार पर अगर नही दी गई और जहां भी अन्यान्य  आधार रहे नेतृत्व चुनने के- विनाश हुए हैं या विद्रोह।  मोदी जी के अंदर नेतृत्व की खूबियाँ हैं उनके अंदर फैसला लेने की क्षमता है और स्वयं सामने रह कर उसे झेलने की भी; अपने विरोधी की कमियाँ और उसकी ताकत का अंदाज़ बखूबी लगा लेते हैं और उसके  प्रत्युत्तर के लिए तैयार रहते हैं समय से -और एक बहुत बडा  नेतृत्व का गुण ये है की लीडर हर छोटे बड़े काम के लिए खुद सामने आए ये जरूरी नही है । यही तो उसकी क्षमता है अगर हर छोटे से काम के लिए वह खुद दौड़ने लगे या धरना प्रदर्शन करने लगे तो अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य  पिछड़ जाएँगे –तो काम कैसे कराया जाये और कैसे नेतृत्व में आस्था पैदा की जाये ये इस व्यक्ति को आता है- ही इज़ ए परफेक्ट लीडर और ऐसा नेतृत्व अगर हमारे देश को मिलता है तो मुझे विश्वास है की हमारा देश प्रगति करेगा और जरूर करेगा

कुछ लोगों को ऐतराज ये भी है कि अभी तक भाजपा की तरफ से कोइघोषणापत्र प्रस्तुत नही हुआ है वैसे तो किसी से छुपा नही कि विकास ही अजेंडा है भाजपा का विकास सम्पूर्ण विकास देश का, समग्र रूप से और गुजरात उसका रोल मौडेल है, फिर कहना क्या और सुनना क्या गुजरात का विकास किसी से छुपा नही।  वहाँ की  कानून व्यवस्था ,सुरक्षा ,सड़कें, यातायात, बिजली और पानी क्या कमी है? जरा तुलना कर के देखें अपने तथाकथित धर्म निरपेक्ष प्रदेशों की स्थिति से।  एकआम  आदमी क्या चाहता है शांति से अपना काम करना और सुकून से दो समय की रोटी ;अपनी पूजा पद्धति का पालन और सुरक्षा क्या नही है वहा, और किसके लिए नही; अल्प संख्यक भी वहाँ इनही सब सुविधाओं का उपभोग कर रहे हैं जैसेकि  बहुसंख्यक।  क्या अब भी किसी घोषणा पत्र की जरूरत है आपको———————————————-कहने की जरूरत क्या है -जो जानते हैं जवाब मांगते नही/

वो क्या यकीन करेंगे जिन्हे एतबार नही—

तो लब्बोलुआब आप ये समझ लें की इन का कोई घोषणापत्र न भी आए तो हम जानते हैं कि विकास होगा और आप भी शायद ये कहीं अंदर से जानते हैं- मगर मानने से डरते हैं ; वफा कुछ ज्यादा ही है आपकी फितरत में वैसे भी घोषणा पत्र कि घोषणाएँ अगर वैसे ही पूरी होनी हैं जैसे दिल्ली में हुई थीं कि घोषणा करो और फिर जुआ उतार कर भाग लो तो धन्यवाद हम बिना घोषणापत्र के सिर्फ अपने आकलन पर भी वोट दे सकते हैं

अब समापन में इतना ही कहना चाहूंगी कि प्लीज़ ,प्लीज- इस बार अपने लिए नही ,अपने संकीर्ण स्वार्थों के लिए नही ,जाति  और धर्म के आधार पर नही ,अपने व्यक्तिगत हितों के लिए नही ;अपने देश के लिए मतदान करिए- क्योंकि इस बार आपका मत देश को आकाश कि ऊंचाइयों पर भी ले जा सकता है और रसातल में भी पहुंचा सकता है- प्रत्याशी का चाल चलन व्यवहार और काम ही वोट का आधार होना चाहिए -अभी वक़्त नही है फिर लिखूंगी कुछ, आज इतना ही; सिर्फ इतनी गुजारिश है कि  इस बार देश के लिए सोचें, सारे विरोधों से ऊपर उठ कर।  एक पूर्ण बहुमत और मजबूत व्यक्ति को समर्थन दें जिस से कम से कम हमारी सीमाएं सुरक्षित  रह सकें और ऐसे नपुंसकों को न चुनें जो हमारे वीर सैनिकोंके अधम हत्यारों के खिलाफ कुछ बोलने में भी कतराते हों ।                                         आज सारा समाज सिर्फ वर्ग ,जाति  ,धर्म भेद में बट कर रह गया है –आज दुनिया में सिर्फ दो वर्ग हैं, ताकतवर और कमजोर –जो ताकतवर है वो सत्ता को कंट्रोल करता है- पद  ,पैसा और ताकत हर चीज का  निर्णायक है । जो ताकत्वर है वो कभी अपने से नीचे वाले का हाथ थाम कर उसे गर्त से नही निकालता -किसी भी धर्म या जाती के लिए यही सच है समय आ गया है की हम इन तुच्छ  बातों को छोड़ कर सिर्फ और सिर्फ देश की प्रगति और संभावित आसन्न (आगे आने वाली )विपाततियों का ध्यान रखते हुए अपने देश के लिए अपने मताधिकार का प्रयोग करें

बाधाएँ आती हैं आयें

घिरें प्रलय की घोर घटाएँ

पैरों के नीचे अंगारे

सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ

निज हाथों में हँसते हँसते

आग लगा कर चलना होगा

कदम मिला कर चलना होगा –

-अटल बिहारी बाज पेयी

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