मोदी एक नेतृत्व —-मेरे विचार (कॉन्टेस्ट -कैसी हो आगामी सरकार )
kavita
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मोदी एक नेतृत्व –
हाँ भाजपा नही मोदी और सिर्फ मोदी– न- न उनका पिट्ठू न समझिएगा मुझे ;न ही उस चश्मे से मुझे देखने का प्रयास करिएगा -जनता हूँ मैं ,–निहायत आम और त्रस्त जनता, भयभीत ,ठगी गई और उलझी हुई जनता । संवाद भी जनता से ही है ,संशय भी जनता के ही हैं; तो चलिये शुरू करते हैं –हाँ भाई तो बताइये मोदी ही क्यूँ –?आप /काँग्रेस/सपा /बसपा —क्यों नही ?आइये क्यों नही से शुरुआत करें जिस से आगे ये हमारी बातों में व्यवधान न डालें –आप –मतलब केजरी वाल जी अच्छे आदमी हैं /लगते थे –शुरुआत अच्छी की अन्ना जी के साथ –महत्वाकांक्षी हैं ,मगर कन्फ़्यूज्ड हैं; कहीं टिक नही सकते, अदर्शवाद की बातें करते हैं, भ्रष्टाचार खत्म करने की बातें करते हैं ; मगर जब भी हाथ कोई मौका आता है सुधार का ,तंत्र में कोई न कोई कमी बता कर वहाँ से निकल लेते हैं ,अगले बड़े लक्ष्य के सपने दिखा कर -कितने लोग आईएएस /आईपीएस/आईएफ़एस बनने का सपना लिए रहते हैं- नही बन पाते –आप बने –छोड़ा कि भ्रष्टाचार है –अरे भाई तंत्र को सुधारो ,तंत्र में रह कर; प्रयास तो करो –अन्ना जी को पकड़ा, फिर छोड़ा क्यों कि बनी नही ,सामंजस्य नही बैठा –अलग पार्टी बनाई ;शुरुआत अच्छी की ;इतनी अच्छी, जितनी खुद को उम्मीद नही थी- गले पड़ा ढ़ोल न बजाते बने न उतारते ,यथार्थ से दूर, किए गए वादों को पूरा करने की झलक भी दिखाई और फिर भाग छूटे क्यों कि सत्ता में कुछ करने की गुंजाइश नही थी। अब आप की नज़र है केंद्र के चुनावों पर ; अब आप ही बताएं जो व्यक्ति इन जिम्मेदारियों को नही सम्हाल सका, जहां भी थोड़ा सा मुश्किल देखी और भाग छूटा वो देश के पीएम पद की ज़िम्मेदारी क्या सम्हालेगा -जहां तुम सुधार कर सकते हो, जितना सुधार कर सकते हो ,उतना तो करो- ये क्या की जुबानी सब्ज बाग दिखाओऔर जैसे पहला रास्ता दिखे भाग लो अपने समर्थकों, अनुयायियों को नीचा दिखा कर; ये कमजोरी है व्यक्तित्व की- ऐसे लोग सिर्फ सपनों में जीते हैं और कठिनाइयाँ सामने आते ही मुंह चुराने लगते हैं, जिम्मेदारियों से ;स्वप्न द्रष्टा कह लीजिये या स्वप्ञ्जीवा -ऐसे लोग सदैव दूसरों में कमियाँ निकालते रहते हैं खुद आगे बढ़ कर कुछ नही कर सकते । और क्या आपको लगता है की हमारे देश की स्थिति इस समय ऐसी है कि हम एक भी और एक्सपरिमेंट कर सकें –थैंक्स टु हमारी वयोवृद्ध पार्टी जिसने हमें स्वतंत्र कराया जिसके पुराने नेताओं के ढ़ोल वो अब भी बजाते रहते हैं क्यों कि नया क्या सुनाएँगे –घोटालों की बाढ़ –सीमा की असुरक्षाएँ ,विदेश नीतियों की विफलताएँ ,अर्थव्यवस्था का बिगड़ता गणित ,प्रधानमंत्री का कमजोर व्यक्तित्व ,और राजनीति और देश को एक परिवार के हाथों का खिलौना बनाने की साजिश —क्या बताएँगे आप सीमा पर मारे जाते जवान और आपकी चुप्पी ,देशद्रोहियों की वकालत ,धर्मनिरपेक्षता के नाम पर ,विदेशी बैंकों में जमा काला धन ,किस किस चीज का जवाब देंगे आप -तो अच्छा है चलो ,गांधी बाबा की चादर में मुंह छुपा लेते हैं ,नेहरू जी की टोपी पहन लेते हैं -आखिर तो ये सब कोंग्रेसी थे न पता नही ये सब आज होते तो शायद इन भ्रष्टाचारियों की जमात को देख या तो राजनीति छोड़ देते या फिर दुनिया -बहर हाल तो चलें बात करें अपनी सपा /बसपा पर वैसे बात क्या करनी है इनका सुशासन तो यूपी की जनता देख हे रही है -एक जातियों में जहर घोलती है तो दूसरी धर्म के नाम पर विष बीज बोती है -इनकी तो बात करना ही समय व्यर्थ करना है ;वैसे भी इन्हें तो मोल तोल करना है -अपनी कुछ एक सीटों का जो इनके हिस्से आजाएंगी धर्म और जाति की शतरंजी बिसात बिछा कर और विष वमन कर के ——
मोदी एक नेतृत्व –
हाँ भाजपा नही मोदी और सिर्फ मोदी– न- न उनका पिट्ठू न समझिएगा मुझे ;न ही उस चश्मे से मुझे देखने का प्रयास करिएगा -जनता हूँ मैं ,–निहायत आम और त्रस्त जनता, भयभीत ,ठगी गई और उलझी हुई जनता । संवाद भी जनता से ही है ,संशय भी जनता के ही हैं; तो चलिये शुरू करते हैं –हाँ भाई तो बताइये मोदी ही क्यूँ –?आप /काँग्रेस/सपा /बसपा —क्यों नही ?आइये क्यों नही से शुरुआत करें जिस से आगे ये हमारी बातों में व्यवधान न डालें –आप –मतलब केजरी वाल जी अच्छे आदमी हैं /लगते थे –शुरुआत अच्छी की अन्ना जी के साथ –महत्वाकांक्षी हैं ,मगर कन्फ़्यूज्ड हैं; कहीं टिक नही सकते, अदर्शवाद की बातें करते हैं, भ्रष्टाचार खत्म करने की बातें करते हैं ; मगर जब भी हाथ कोई मौका आता है सुधार का ,तंत्र में कोई न कोई कमी बता कर वहाँ से निकल लेते हैं ,अगले बड़े लक्ष्य के सपने दिखा कर -कितने लोग आईएएस /आईपीएस/आईएफ़एस बनने का सपना लिए रहते हैं- नही बन पाते –आप बने –छोड़ा कि भ्रष्टाचार है –अरे भाई तंत्र को सुधारो ,तंत्र में रह कर; प्रयास तो करो –अन्ना जी को पकड़ा, फिर छोड़ा क्यों कि बनी नही ,सामंजस्य नही बैठा –अलग पार्टी बनाई ;शुरुआत अच्छी की ;इतनी अच्छी, जितनी खुद को उम्मीद नही थी- गले पड़ा ढ़ोल न बजाते बने न उतारते ,यथार्थ से दूर, किए गए वादों को पूरा करने की झलक भी दिखाई और फिर भाग छूटे क्यों कि सत्ता में कुछ करने की गुंजाइश नही थी। अब आप की नज़र है केंद्र के चुनावों पर ; अब आप ही बताएं जो व्यक्ति इन जिम्मेदारियों को नही सम्हाल सका, जहां भी थोड़ा सा मुश्किल देखी और भाग छूटा वो देश के पीएम पद की ज़िम्मेदारी क्या सम्हालेगा -जहां तुम सुधार कर सकते हो, जितना सुधार कर सकते हो ,उतना तो करो- ये क्या की जुबानी सब्ज बाग दिखाओऔर जैसे पहला रास्ता दिखे भाग लो अपने समर्थकों, अनुयायियों को नीचा दिखा कर; ये कमजोरी है व्यक्तित्व की- ऐसे लोग सिर्फ सपनों में जीते हैं और कठिनाइयाँ सामने आते ही मुंह चुराने लगते हैं, जिम्मेदारियों से ;स्वप्न द्रष्टा कह लीजिये या स्वप्ञ्जीवा -ऐसे लोग सदैव दूसरों में कमियाँ निकालते रहते हैं खुद आगे बढ़ कर कुछ नही कर सकते । और क्या आपको लगता है की हमारे देश की स्थिति इस समय ऐसी है कि हम एक भी और एक्सपरिमेंट कर सकें –थैंक्स टु हमारी वयोवृद्ध पार्टी जिसने हमें स्वतंत्र कराया जिसके पुराने नेताओं के ढ़ोल वो अब भी बजाते रहते हैं क्यों कि नया क्या सुनाएँगे –घोटालों की बाढ़ –सीमा की असुरक्षाएँ ,विदेश नीतियों की विफलताएँ ,अर्थव्यवस्था का बिगड़ता गणित ,प्रधानमंत्री का कमजोर व्यक्तित्व ,और राजनीति और देश को एक परिवार के हाथों का खिलौना बनाने की साजिश —क्या बताएँगे आप सीमा पर मारे जाते जवान और आपकी चुप्पी ,देशद्रोहियों की वकालत ,धर्मनिरपेक्षता के नाम पर ,विदेशी बैंकों में जमा काला धन ,किस किस चीज का जवाब देंगे आप -तो अच्छा है चलो ,गांधी बाबा की चादर में मुंह छुपा लेते हैं ,नेहरू जी की टोपी पहन लेते हैं -आखिर तो ये सब कोंग्रेसी थे न पता नही ये सब आज होते तो शायद इन भ्रष्टाचारियों की जमात को देख या तो राजनीति छोड़ देते या फिर दुनिया -बहर हाल तो चलें बात करें अपनी सपा /बसपा पर वैसे बात क्या करनी है इनका सुशासन तो यूपी की जनता देख हे रही है -एक जातियों में जहर घोलती है तो दूसरी धर्म के नाम पर विष बीज बोती है -इनकी तो बात करना ही समय व्यर्थ करना है ;वैसे भी इन्हें तो मोल तोल करना है -अपनी कुछ एक सीटों का जो इनके हिस्से आजाएंगी धर्म और जाति की शतरंजी बिसात बिछा कर और विष वमन कर के ——क्रमशः
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