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गुमनाम हसरतें

kavita
kavita
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कुछ होते हैं दिन यूं भी कि  बेबात ही
खुश होने कादिल करता है
कुछ भीगी हुई सी राहों पे
तेरा हाथ पकड़ चलते रहने कोदिल करता है
डूबती शाम के धुंधलकों में
दूर कहीं छिप जाने को दिल करता है
कभी मिल के तेरे साथ
गरजते समंदर के किनारे
कुछ घरोंदे बनाने को दिल करता है
दिल ही तो है नादां
सच और झूठ का फरक क्या जाने
सपनों और उजालों का फरक क्या जाने
कभी यूं भी सच से मुंह छुपा
गुमनाम हसरतों के आँचल में
गुम हो जानने को दिल करता है
कुछ होते हैं दिन यूं भी कि  बेबात ही
खुश होने कादिल करता है
कुछ भीगी हुई सी राहों पे
तेरा हाथ पकड़ चलते रहने कोदिल करता है
डूबती शाम के धुंधलकों में
दूर कहीं छिप जाने को दिल करता है
कभी मिल के तेरे साथ
गरजते समंदर के किनारे
कुछ घरोंदे बनाने को दिल करता है
दिल ही तो है नादां
सच और झूठ का फरक क्या जाने
सपनों और उजालों का फरक क्या जाने
कभी यूं भी सच से मुंह छुपा
गुमनाम हसरतों के आँचल में
गुम हो जानने को दिल करता है

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