kavita
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कंघे में उलझा एक सफ़ेद बाल और ,एक पूजा की थाली
साथ है मेरे ,जो है सिर्फ मेरी;
थाती है जीवन की,याद है आँचल की ;
प्यास है ममता की
छूती हूँ इनको ,तो लगता है मानो
छू लिया हो तुझको माँ
पीले पड़ते कुछ कागज के टुकड़े
जिनपे लिखी थीं तूने हज़ार बातें
कभी कभी डाँटें ,कभी असीसें
आज रह गई हैं मेरे पास ;यही चंद यादें
और एक बाल, कंघी में उलझा सा –
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