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राधा की होली

kavita
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सखी री होरी कैसे खेलूँ मैं तो उसके ही रंग रांची
कान्हा मेरे परदेस बसत हैं मोरे मन बसत उदासी
सखी री होरी कैसे खेलूँ मैं पी के ही रंग रांची
अबकी बरस भी दरस न पाऊँ क्यूँ प्रभु अविनासी
फागुन में सब रंग रंग हैं मेरे ही चित्त उदासी
कब दोगे तुम दरस पिया रे अँखिया मोरी प्यासी
जब आओगे अंगना मोरे फगुआ तब ही भाए
कह देना कारी कोयल से बिरहा  गीत न गाए
बोरी सुन के उसकी मेरी  अँखियाँ  भर भर आए
सखी री होरी कैसे खेलूँ  मैं तो उसके ही रंग रांची
सखी री होरी कैसे खेलूँ मैं तो उसके ही रंग रांची
कान्हा मेरे परदेस बसत हैं मोरे मन बसत उदासी
सखी री होरी कैसे खेलूँ मैं पी के ही रंग रांची
अबकी बरस भी दरस न पाऊँ क्यूँ प्रभु अविनासी
फागुन में सब रंग रंग हैं मेरे ही चित्त उदासी
कब दोगे तुम दरस पिया रे अँखिया मोरी प्यासी
जब आओगे अंगना मोरे फगुआ तब ही भाए
कह देना कारी कोयल से बिरहा  गीत न गाए
बोरी सुन के उसकी मेरी  अँखियाँ  भर भर आए
सखी री होरी कैसे खेलूँ  मैं तो उसके ही रंग रांची

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