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इक मुलाक़ात अपने आप से

kavita
kavita
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आज ज़िंदगी से
यूं ही सी इक मुलाक़ात हो गई
पूछा उसने
कि’ कौन है तू” ,मैंने कहा -“माँ हूँ “
कौन है तू
उसने पूछा,” पत्नी” कहा मैंने
‘तू है कौन”
फिर से कहा उसने ,कुछ तेज सी आवाज़ में
“बेटी “उतनी ही धीमी
आवाज़ में डर  डर के जवाब दिया मैंने
चुप हो गई वो
आँखों में आँसू लिए ,कुछ देर को ,
हौले से सर को
उठाके ,करुणा भरी नज़र से देखा उसने ,
आँख नम थी उसकी
देखा मैंने; और पूछा” खुश तो है तू”?
मैं हिचकिचायी
सवाल  बहुत आसान सा  था
मैं खुश थी क्या?
लेकिन मैं थी कहाँ ;मैं हूँ कहाँ ?
बेटी पत्नी  माँ
पर मैं -कहाँ थी- मैं- कहाँ हूँ
मैंने देखा
ज़िंदगी की आँखों में आँखें डाल कर
मुस्कुराइ और कहा
” मैं चेतना हूँ “
अपनी खुद की जागृत चेतना —
आज ज़िंदगी से
यूं ही सी इक मुलाक़ात हो गई
पूछा उसने
कि’ कौन है तू” ,मैंने कहा -“माँ हूँ “
कौन है तू
उसने पूछा,” पत्नी” कहा मैंने
‘तू है कौन”
फिर से कहा उसने ,कुछ तेज सी आवाज़ में
“बेटी “उतनी ही धीमी
आवाज़ में डर  डर के जवाब दिया मैंने
चुप हो गई वो
आँखों में आँसू लिए ,कुछ देर को ,
हौले से सर को
उठाके ,करुणा भरी नज़र से देखा उसने ,
आँख नम थी उसकी
देखा मैंने; और पूछा” खुश तो है तू”?
मैं हिचकिचायी
सवाल  बहुत आसान सा  था
मैं खुश थी क्या?
लेकिन मैं थी कहाँ ;मैं हूँ कहाँ ?
बेटी पत्नी  माँ
पर मैं -कहाँ थी- मैं- कहाँ हूँ
मैंने देखा
ज़िंदगी की आँखों में आँखें डाल कर
मुस्कुराइ और कहा
” मैं चेतना हूँ “
अपनी खुद की जागृत चेतना —

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