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माँ के लिए -(महिला दिवस विशेष )

kavita
kavita
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हैरान होती हूँ जब लोग पूछते हैं मुझसे
परेशान हो तुम अपनी– माँ के लिए !
भाई नहीं है क्या /अकेली हो /ससुराल –?
और फिर देखते हैं ऐसी नज़रों से
मानो कोई गुनाह कर दिया हो मैंने
अपनी –माँ के बारे में सोच कर
उसकी परेशानियों के बारे सोच कर
बेटी हूँ उसकी- अधिकार की बात तो सब करते हैं
मगर फ़र्ज़ क्या मेरा कोई बनता नहीं
मुझको भी तो उसने जन्म दिया है अपने अंश से
पाला है अपनी नीदों को खो कर
जो हूँ बनने की प्रेरणा भी है उसी की
फिर क्यों पूछते हैं लोग
परेशान हो क्यों तुम -अपनी –माँ -के लिए
चाहती हूँ की हर पल को संजो लूं अपनी यादों में
हर पल उसके साथ का ,बटोर लूं अपने आँचल में
साथ उसके रह सकूं जीवन की इस बेला में
सांझ ढलने को है रात आने को है –
मैं तो और कुछ नहीं ,उसका साया हूँ -सिर्फ
छोड़ कैसे दूं उसे -इस शाम को. इस रात में
ज़िम्मेदारियाँ हैं बहुत .चाहतें हैं बहुत
बंदिशें हैं बहुत -उलझने हैं बहुत
इनसे जूझने का हौसला भी तो दिया है उसने
आज भी मेरा बचपन जिन्दा है क्यूँ की तू है
आज भी मैं जिद कर सकती हूँ —
——————————– क्यूँ की तू है
तेरा साया हर पल मेरे साथ रहेगा- माँ
तेरे जाने के बाद भी —
पर मैं तो बड़ी हो जाऊंगी
डरती हूँ मैं घबरा रही हूँ मैं -अंधेरों से
छुपना चाहती हूँ मैं तेरे आँचल में
परेशान हूँ मैं अपने लिए
और लोग पूछते हैं की क्यूँ —
परेशान हो तुम –अपनी माँ के लिए

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