खुद-मुख्तार kavita ...जिस्म अब ख़त्म हो और रूह को जब सांस आये .. मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको ..... अब कोई शिकवा नही ,शिकायत भी नही; ज़िंदगी से आज
कि हम हर तूफान को पीछे छोड़ आए हैं ;।
आगे बस बहारें ही बहारें हैं :-
कि पतवार अपने हाथों में हम थाम आए हैं ।
क्यों अपने मुस्तकबिल के लिए ;
इंतज़ार तुम्हारा करूँ —-
जान मेरी, ज़िंदगी मेरी; और ख्वाहिशें भी मेरी हैं
फिर तुमसे क्यों उम्मीद ये रक्खूँ कि
हाथ पकड़ के मेरा पहुंचाओगे मुझे
मेरी मंज़िल तक तुम —?
खुद मुख्तार हूँ मैं, अपना जहां चुन सकती हूँ
तुम चाहो ;तो राहों में मेरी आजाओ
रहनुमा नही एक साथी का इंतज़ार है
अब कोई शिकवा नही ,शिकायत भी नही; ज़िंदगी से आज
कि हम हर तूफान को पीछे छोड़ आए हैं ;।
आगे बस बहारें ही बहारें हैं :-
कि पतवार अपने हाथों में हम थाम आए हैं ।
क्यों अपने मुस्तकबिल के लिए ;
इंतज़ार तुम्हारा करूँ —-
जान मेरी, ज़िंदगी मेरी; और ख्वाहिशें भी मेरी हैं
फिर तुमसे क्यों उम्मीद ये रक्खूँ कि
हाथ पकड़ के मेरा पहुंचाओगे मुझे
मेरी मंज़िल तक तुम —?
खुद मुख्तार हूँ मैं, अपना जहां चुन सकती हूँ
तुम चाहो ;तो राहों में मेरी आजाओ
रहनुमा नही एक साथी का इंतज़ार है मुझको
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