आज की नारी – kavita ...जिस्म अब ख़त्म हो और रूह को जब सांस आये .. मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको ..... आज की नारी
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मैं हूँ तुम्हारे घर में ,तुम्हारे रहमो करम पे
जो तुम नही तो इसमे मेरा वजूद क्या है –?
घर है तुम्हारा इसमे -सब जानते है तुमको
मैं मिट भी जाऊ इसमे तब भी किसे पता है?
क्यों बनी रहूँ हमेशा मैं नीव का ही पत्थर
कि ना हो तुम तो मेरा -ही आशियाना धसक जाये
नही बनना है मुझे चाँद/चाँदनी —-कि ;
शीतलता के गीत जिसके सभी गायें
पर दिन की चकाचौंध में,
सब उसको भूल जाएँ
चढ़ना है मुझे आकाश में
और तपना है सूरज की तरह
कि चाह कर भी कोई —-;
मुझको न भूल पाये।
इस तपिश को मेरी गले लगा सको तो —चलो
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साथ बन के तुम -मेरे हम सफर–!
आज की नारी
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मैं हूँ तुम्हारे घर में ,तुम्हारे रहमो करम पे
जो तुम नही तो इसमे मेरा वजूद क्या है –?
घर है तुम्हारा इसमे -सब जानते है तुमको
मैं मिट भी जाऊ इसमे तब भी किसे पता है?
क्यों बनी रहूँ हमेशा मैं नीव का ही पत्थर
कि ना हो तुम तो मेरा -ही आशियाना धसक जाये
नही बनना है मुझे चाँद/चाँदनी —-कि ;
शीतलता के गीत जिसके सभी गायें
पर दिन की चकाचौंध में,
सब उसको भूल जाएँ
चढ़ना है मुझे आकाश में
और तपना है सूरज की तरह
कि चाह कर भी कोई —-;
मुझको न भूल पाये।
इस तपिश को मेरी गले लगा सको तो —चलो
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साथ बन के तुम -मेरे हम सफर–!
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