प्रतिबद्ध -(महिला दिवस पर विशेष ) kavita ...जिस्म अब ख़त्म हो और रूह को जब सांस आये .. मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको ..... तिबद्ध हूँ मैं तुमसे ,तुम्हारे लिए ,तुम्हारे प्रति ;
सप्तपदी ली है मैंने तुम्हारे साथ –
कसम ली है साथ निभाने की ;
साथ निभाऊंगी ही ,–निभाना ही है
मगर क्या तुम भी हो साथ मेरे -मेरी इस कसम में ,
पूछ सकती हूँ क्या -कब साथ निभाया तुमने ?
अकेली थी मैं -अपने सपनों अपनी आशाओं के साथ
क्या सिर्फ एक सपना हूँ मैं
क्या मोल किया है मेरी आकांक्षाओं का तुमने
पुरुष हो -अधिकार है तुम्हारा -?
पर कब तक …….इक दिन /आज नहीं ..
भूल जाऊंगी मैं ये वचन -तब शायद ….
एहसास हो तुम्हे …पर आज नहीं ,अभी नहीं
अभी ख़त्म नहीं हुई सीमा मेरे सहने की …..
आज भी ,प्रतिबद्ध हूँ मैं ;तुम्हारे लिए ,तुम्हारे प्रति
प्रतिबद्ध हूँ मैं तुमसे ,तुम्हारे लिए ,तुम्हारे प्रति ;
सप्तपदी ली है मैंने तुम्हारे साथ –
कसम ली है साथ निभाने की ;
साथ निभाऊंगी ही ,–निभाना ही है
मगर क्या तुम भी हो साथ मेरे -मेरी इस कसम में ,
पूछ सकती हूँ क्या -कब साथ निभाया तुमने ?
अकेली थी मैं -अपने सपनों अपनी आशाओं के साथ
क्या सिर्फ एक सपना हूँ मैं
क्या मोल किया है मेरी आकांक्षाओं का तुमने
पुरुष हो -अधिकार है तुम्हारा -?
पर कब तक …….इक दिन /आज नहीं ..
भूल जाऊंगी मैं ये वचन -तब शायद ….
एहसास हो तुम्हे …पर आज नहीं ,अभी नहीं
अभी ख़त्म नहीं हुई सीमा मेरे सहने की …..
आज भी ,प्रतिबद्ध हूँ मैं ;तुम्हारे लिए ,तुम्हारे प्रति
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