आँख का तारा (विवाहिता बेटी की व्यथा )-महिला दिवस पर – kavita ...जिस्म अब ख़त्म हो और रूह को जब सांस आये .. मुझसे एक कविता का वादा है मिलेगी मुझको ..... देख रही हूँ दूर गगन में ,जलता बुझता इक नन्हा तारा
तारे में से तू दिखती है .मेरी नन्ही प्यारी बिटिया
तेरी आँखों में आंसू मेरे,मुझसे ही ये पूछ रहे हैं
माँ मुझसे क्या खता हुई मैं तेरेहीघर क्यों जन्मी
मेरा कोई मोल नहीं जब ,जग में ही न आने देती
लाई है तो मुझे भेज कर गैरों जैसे भूल ना जाती
दुर्गा माँ की पूजा करती नौ दिन का जगराता
दसवें दिन फिर उसे भेज कर बोझा करती आधा
मैं भीतो तेरा अंश हूँ माता,क्यों भूल गयी तू मुझको
क्या भैय्या को भी ऐसे ही तू नहीं देखती बरसों
कैसे कहूं की माता हूँ पर हूँ तो आखिर नारी
दुनिया के नियम से बंधी ,मैं ;क्या करती बेचारी
बेटी एक पराया धन है दुनिया ने समझाया
मैंने भी एक धरम समझ कर इसको था अपनाया
और नहीं अब और नहीं ,मैं ये ना होने दूंगी
जो कुछ भी मैंने झेला है तुझको ना सहने दूंगी
देख रही हूँ दूर गगन में ,जलता बुझता इक नन्हा तारा
तारे में से तू दिखती है .मेरी नन्ही प्यारी बिटिया
तेरी आँखों में आंसू मेरे,मुझसे ही ये पूछ रहे हैं
माँ मुझसे क्या खता हुई मैं तेरेहीघर क्यों जन्मी
मेरा कोई मोल नहीं जब ,जग में ही न आने देती
लाई है तो मुझे भेज कर गैरों जैसे भूल ना जाती
दुर्गा माँ की पूजा करती नौ दिन का जगराता
दसवें दिन फिर उसे भेज कर बोझा करती आधा
मैं भीतो तेरा अंश हूँ माता,क्यों भूल गयी तू मुझको
क्या भैय्या को भी ऐसे ही तू नहीं देखती बरसों
कैसे कहूं की माता हूँ पर हूँ तो आखिर नारी
दुनिया के नियम से बंधी ,मैं ;क्या करती बेचारी
बेटी एक पराया धन है दुनिया ने समझाया
मैंने भी एक धरम समझ कर इसको था अपनाया
और नहीं अब और नहीं ,मैं ये ना होने दूंगी
जो कुछ भी मैंने झेला है तुझको ना सहने दूंगी
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