Menu
blogid : 15919 postid : 709286

विस्तार

kavita
kavita
  • 142 Posts
  • 587 Comments

सदियों काविस्तार है,

जन्मों का संगीत है,

कोई गुनगुना रहा है-

एक सुर ,लय ,ताल –प्रवाह है;

निर्बाध, निर्विकार बहता ही जा रहा है.

जीवन की सरिता है, प्रेम का उछाह है-

अनंत ,चिरंतन सागर में ,लहरों जैसा हाल है-

नश्वरता को चुनौती देती चिरंतनता;

का साक्षात सदेह प्रमाण है.

जीवन खत्म होते रहे,

साम्राज्य हाथ बदलते रहे,

इसको जीत कौन पाया-

काल के भी वश में ये कहाँ आया-!

प्रेम –हाँ प्रेम का ही ये विस्तार है-

एहसास है ,साम्राज्य है –

जो फैला है –अनादि से अनंत तक

असीम से निस्सीम तक-

इस जीवन से उस जीवन तक-

इसे जीत सका है कोई -?

इसे जीत सकेगा कोई -?

इसे जीत सकता है कोई-?

रोक सकता है कोई इस प्रवाह को-?

निर्झर सरिता को इस गंगा को -?

इसकी पावनता को –?

रोको मत –इसे बहने दो-

गाँव- गाँव ;शहर- शहर ;देश- देश

जन्म- जन्म ;युगों- युगों तक;

क्यों कि यही मोक्ष दायिनी है

यही है- जो मुक्ति है;

यही है- जो ज्ञान है

यही रोक सकता है -विनाश को,

जाती, धर्म, कुरीतियों से जकड़े समाज को

रास्ता दिखा सकता है कोई- तो

यही है, यही है वो;- यही-!

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh