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सदियों काविस्तार है,
जन्मों का संगीत है,
कोई गुनगुना रहा है-
एक सुर ,लय ,ताल –प्रवाह है;
निर्बाध, निर्विकार बहता ही जा रहा है.
जीवन की सरिता है, प्रेम का उछाह है-
अनंत ,चिरंतन सागर में ,लहरों जैसा हाल है-
नश्वरता को चुनौती देती चिरंतनता;
का साक्षात सदेह प्रमाण है.
जीवन खत्म होते रहे,
साम्राज्य हाथ बदलते रहे,
इसको जीत कौन पाया-
काल के भी वश में ये कहाँ आया-!
प्रेम –हाँ प्रेम का ही ये विस्तार है-
एहसास है ,साम्राज्य है –
जो फैला है –अनादि से अनंत तक
असीम से निस्सीम तक-
इस जीवन से उस जीवन तक-
इसे जीत सका है कोई -?
इसे जीत सकेगा कोई -?
इसे जीत सकता है कोई-?
रोक सकता है कोई इस प्रवाह को-?
निर्झर सरिता को इस गंगा को -?
इसकी पावनता को –?
रोको मत –इसे बहने दो-
गाँव- गाँव ;शहर- शहर ;देश- देश
जन्म- जन्म ;युगों- युगों तक;
क्यों कि यही मोक्ष दायिनी है
यही है- जो मुक्ति है;
यही है- जो ज्ञान है
यही रोक सकता है -विनाश को,
जाती, धर्म, कुरीतियों से जकड़े समाज को
रास्ता दिखा सकता है कोई- तो
यही है, यही है वो;- यही-!
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