kavita
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इतना जीवन बीत गया है
साथ तुम्हारी राहों में
पर लगता है कि आज तलक भी
,तू ही तू है मेरी साँसों में
जीवन एक समर्पण है ,
जो न तेरा है -न मेरा है
इसके सुख दुख के लम्हों को
हमने साथ ही मिल कर झेला है
साथ ही मिल के झेला है
कुछ तुमने -कुछ हमने ,सीखा है
दबना, झुकना और मन रखना
बिन इसके कैसे बनता –
जीवन एक सुखद सपना
दो कलियों और फूलों का
उपहार मिला है जीवन में ;
साथी मेरे मैं कृतज्ञ हूँ,
आभारी हूँ मन ही मन में ————————-
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