अक्सर सुनती हूँ कि लोग प्यार में जान दे देते हैं; खास तौर पर वैलेंटाइन डे के आस पास ,कभी कोई लड़की, कभी कोई लड़का- अपने प्यार को न पा सकने के गम में ,पूछना चाहती हूँ इन प्रेम दीवानो से कि क्या जीवन सिर्फ इसी प्यार के लिए है – क्या इस जीवन में और कुछ नहीं बचा करने को ?कुछ नहीं कर सकते तो इसे सौंप क्यों नहीं देते समाज और देश के नाम –
ज़िंदगी सिर्फ तेरी नहीं औरों की भी अमानत है ,छोड़ कर ;
अपनी ज़िम्मेदारियाँ जन्नत में भी क्या सुकून पाओगे —?
अक्सर सुनती हूँ कि लोग प्यार में जान दे देते हैं; खास तौर पर वैलेंटाइन डे के आस पास ,कभी कोई लड़की, कभी कोई लड़का- अपने प्यार को न पा सकने के गम में ,पूछना चाहती हूँ इन प्रेम दीवानो से कि क्या जीवन सिर्फ इसी प्यार के लिए है – क्या इस जीवन में और कुछ नहीं बचा करने को ?कुछ नहीं कर सकते तो इसे सौंप क्यों नहीं देते समाज और देश के नाम –
ज़िंदगी सिर्फ तेरी नहीं औरों की भी अमानत है ,छोड़ कर ;
अपनी ज़िम्मेदारियाँ -जन्नत में भी क्या सुकून पाओगे —?
उन गीतों कि बात क्यूँ करते होजो कभी अधरों पर भी आ न सके
उन ग़ज़लों कि बात क्यों करतेहो जो महफ़िल में तुम गुनगुना न सके
जो बीत गया जो हो न सका उसको क्या रोयें रोने को और बहुत कुछ है जमाने में
रोना है तो रोएं उस रोटी पर जो गरीब के मुंह तक पहुँच नहीं पाती
रोएं उस माँ की किस्मत पर जिसका बेटा मरा है सीमा पर
औउसका मेडल बेच कर वो यहाँ दाना नहीं पाती, – उस बेवा पर
जो सती नहीं होती -पर दफ़न हो जाती है अपने अरमानो के साथ
रोएं हम क्यूँ न उस देश पर- जहाँ बेटियां मर जाती हैं/मार दी जाती हैं
— माँ की कोख में ;बाप की इज्ज़त और उसको कर्ज़ों से बचाने के लिए-
ज़हीन फिरते हैं सड़कों पर बेकारी के अंधेरों में ,परिवारों से मुंह छुपाये हुए
;हाथ में डिग्री और माथे पर जातियों का लेबल चस्पां किये
जहाँ गैरतमंद मुंह की खाते हैं और बेशर्म रोज सीढ़ियां चढ़ते जाते हैं
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