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पहचान

kavita
kavita
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DSC01589थक गए हो -विश्रांत हो ;आओ बाँहों में  छूपाळू ;
गोद को तकिया बना कर, नींद में तुमको सुला दूं
दे के अपनी उलझनें  मुझको, तुम सो जाओ जरा;
मैं जगी हूँ- भूल जाओ दुनिया के गम तुम रात भर,
मैं तुम्हारे ही लिए हूँ ,पत्नी कभी हूँ  ,कभी  प्रेयसी  ,
जननी भी हूँ और माँ  कभी –
भावना का एक रिश्ता जो तुमसे जुड़ता है मेरा ,
वो ही मेरी ताकत है, वोही कमजोरी कहीं –
छल ना करो मुझसे कभी, खेलो न मेरेमन से तुम ,
तो मैं तुम्हारे ही लिए हूँ पत्नी कभी तो कभी प्रेयसी
जननी भी हूँ और माँ कभी
थक गए हो -विश्रांत हो ;आओ बाँहों में  छूपाळू ;
गोद को तकिया बना कर, नींद में तुमको सुला दूं
दे के अपनी उलझनें  मुझको, तुम सो जाओ जरा;
मैं जगी हूँ- भूल जाओ दुनिया के गम तुम रात भर,
मैं तुम्हारे ही लिए हूँ ,पत्नी कभी हूँ  ,कभी  प्रेयसी  ,
जननी भी हूँ और माँ  कभी –
भावना का एक रिश्ता जो तुमसे जुड़ता है मेरा ,
वो ही मेरी ताकत है, वोही कमजोरी कहीं –
छल ना करो मुझसे कभी, खेलो न मेरेमन से तुम ,
तो मैं तुम्हारे ही लिए हूँ पत्नी कभी तो कभी प्रेयसी
जननी भी हूँ और माँ कभी

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