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इम्तिहानो का मौसम

kavita
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मौसम इम्तिहानों के हैं, हर हाथ में किताबें हैं ,
और चेहरों पर हैं हवाइयाँ —
क्या पढ़ा ,कितना पढ़ा, कब तक पढ़ा ?
गर नही पढ़ा -तो क्यों नही पढ़ा -?
कितना कुछ याद आता है,
तारीखें बदल जाती हैं, साल बदल जाते हैं,
नस्ल बदल जाती है ,नही बदलते –
तो ये मौसम इम्तिहानों के—-

और -ये खौफ इम्तिहानों के
डरते तो हम सभी हैं -कभी पढ़ाई –
तो कभी ज़िंदगी के इम्तिहानों से
मगर अक्सर यही पाया है-
– डर सच्चाई से कहीं ज्यादा बड़ा होता है
जो होगा उस से पहले ही ;
हम क्या होगा से डर जाते हैं
तभी तो कहते हैं कि ;
तस्वीर हकीकत से कहीं ज्यादा खौफनाक होती है
डरना क्या -डरना है क्यो –
इम्तिहानों से ;कोई है -?
जो नही गुजरा इनसे ,
मतलब तो हौसला रखने से है
अभी तो वक़्त है- अर्जुन —
-उठा के गाँडीव अपना ,पुरूषार्थ करो।
लक्ष्य सामने है ,उस से;
अब तो न डिगो
याद रखना ये बात उम्र भर
इक जीत इक हार का कोई मतलब नही होता
ज़िंदगी लंबी है -जियोगे तो मौके और भी आएंगे
डर को नही जीत को चुनो
,कायरता नही पुरुषार्थ को चुनो —

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