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–और एक रौशन कोना

kavita
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–और एक रौशन कोना

तुम तो वो चाँद नहीं मेरे कि
दिखा के फख्र से कह सकूं सबको
कि देखो ;–
सबसे पहले इसको मैंने ढूँढा था
तुम तो हो ,मेरी रातों का रोशन, वो दिया;
जो टिमटिमाता है मेरे मन के कोने में
जला के रखा है जिसे बरसों से मगर
डरती रहती हूँ फिर भी-
कि साँसों की हलकी सी छुअन से ,
हलकी हवा के झोंके से, बुझ न जाए कहीं
बंद कर रखा है हर खिड़की को हर सांकल को
मूँद रखा है हर कपाट, हर झरोखे को ,
कही झांक न ले कोई ,मेरे मन के आँगन का
वो टिमटिमाता दिया और वो रोशन कोना –

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