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एक चुंबन आंसुओं में भीगा सा –

kavita
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अपनी डिओ मोड दी थी मैंने अचानक ही उस रास्ते पर इस तरह की पीछे आने वाला मोटर साइकल सवार हदबड़ा कर रूक गया। मगर मैंने ध्यान दिये बिना अपनी डिओ आगे बढ़ा दी । ठीक सामने ही था तुम्हारा घर –और उसके सामने ही मेरा
वो छत जहां आज भी देख रही हूँ मैं तुम्हें -अपने दोनों दोस्तों के साथ ,मेरे स्कूल जाने के इंतज़ार में –। डिओ किनारे लगा कर मैं उतरी, कोई नही है आस पास ;पहले सोचा कि तुम्हारी तरफ चलूँ पर फिर धीरे से अपने घर की तरफ मुड़ गई । सामने ही था वो छोटा सा गलियारा जहां अपनी साइकल रखती थी रोज –जहां तुमने मेरे किताब मुझे लौटाते हुए कहा था इसमें लेटर है तुम्हारे लिए –वो लम्हा मानो कहीं गया ही नही यही ठिठका रहा मेरे आने के इंतज़ार में ।
धीरे से सीढ़ियाँ चढ़ती हूं जिन पर कभी रोज ही चढ़ती थी अपनी साइकल उठा कर दौड़ते हुए, आज मानो कितना वजन बांध दिया हो किसी ने पैरों में
अपने दरवाजे पर पहुँच कर रुक गई मैं ;लगा ही नही कि पैंतीस सालों का लम्बा फासला तय कर के पहुंची हूँ यहाँ । इतना लंबा अरसा बीत गया और मैं जैसे जम सी गई हूँ इसी समय काल में —
कुछ सीढ़ियाँ और –और मैं पहुँच गई थी उस छत पर – कितनी छोटी लग रही थी आज; और तुम्हारी छत कितनी पास । उस कोने पर बैठे तुम , घूमते टहलते ,दोस्तों के साथ , अकेले , कभी हँसते बात करते ,कभी मुझे देखते ढूंढते और अंतिम दिन उसी कोने पर बैठे मुझे दूरजाते देखते हुए -सब कुछ तो था यहीं पर कहाँ खो गए थे हम ;कहाँ खो गए हैं हम -कल कितने पास थे हम और आज कितनी दूर –!
तुम्हारा घर ,वो खिड़की जहां से तुम्हारी एक झलक पाने के लिए कितना इंतज़ार करती थी मैं ,बेचैन हो जाती थी अगर न दिखाई दो तो –निगाह हटती नही ,कदम उठते नही ,आँखें गीली क्यों हैं- सीने में दर्द सा क्यूँ उठ रहा है /-मगर जाना तो है ,दूसरे के घर उसकी छत पर ;बिना उसकी इजाजत के खड़ी हूँ; कोई देखेगा तो क्या सफाई दूँगी !?भारी कदम क्या होते हैं -आज पता चला ।
नीचे आई पर कदम वापस नही उठे ,धीरे से बढ़ गई तुम्हारी सीढ़ियों पर । तुम्हारे घर पर नही रुकी ,सीढ़ी से ऊपर चली गई । छत के दरवाजों पर ताले बंद थे –सीढ़ी पर ऊपर खड़े थे तुम ;तुमने कुछ कहा था ,मैं नही समझ पायी थी –कितना हंस रहे थे तुम और मैं शर्म से डूब सी गई थी अपनी नासमझी पर –वही सीढ़ियाँ ,वही रेलिंग ,वही मैं मगर तुम कहाँ हो ?बेसाख्ता ही सर झुक गया है वहाँ जहां तुंमने हाथ रखे थे कभी
दो आँसू और एक ठंडी सांस छोड़ आई हूँ वहाँ और भी कुछ छोड़ा है वहाँ -एक चुंबन आंसुओं में भीगा सा

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